मंगलवार, 21 जून 2011

नजर न लग जाए

आई स्ट्रेन यानी आंखों का तनाव एक आम समस्या है। कंप्यूटर या लैपटॉप पर लगातार काम करने और ज्यादा टीवी देखने के अलावा ऐसे कई और काम हैं, जिनके कारण यह समस्या आ सकती है। आई स्ट्रेन ज्यादा गंभीर हो जाए तो इसकी वजह से कई दूसरी समस्याएं भी हमला कर देती हैं। आंखों के इस तनाव से बचने के तरीके एक्सपर्ट्स से बात करके बता रहे हैं प्रभात गौड़ :




स्ट्रेन क्या होता है



आई स्ट्रेन दरअसल आंखों को कंट्रोल करने वाली मसल्स का स्ट्रेन होता है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि अगर आंख को एक ही स्थिति में लंबे वक्त तक रखा जाए तो आंख की मांसपेशियों में तनाव आ जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि किसी एक ही चीज पर लंबे वक्त तक आंखों को फोकस किया जाए या किसी एक ही दूरी पर मौजूद चीज पर आंखों को देर तक स्थिर रखा जाए तो भी आंख में तनाव आ जाता है। नजदीक की चीजों पर फोकस करने से आंख में स्ट्रेन आने की संभावना ज्यादा होती है। दूर की चीजों पर फोकस किया जाए तो स्ट्रेन उतनी जल्दी नहीं होता। जल्दी-जल्दी दूरी बदलने पर भी आंखों में स्ट्रेन बढ़ जाता है।



इनसे हो सकता है स्ट्रेन



जिन ऐक्टिविटीज में लंबे समय तक एक ही चीज पर आंखों को फोकस करना होता है, उनमें स्ट्रेन हो सकता है। ये गतिविधियां हैं :



- कंप्यूटर का इस्तेमाल

- टीवी या मोबाइल की स्क्रीन लगातार देखना

- पढ़ना

- ड्राइविंग



इसके अलावा इन वजहों से भी आंखों में स्ट्रेन हो सकता है।



- कम रोशनी

- किसी चीज को देखने का गलत एंगल

- ज्यादा चमकदार चीजों को देखना

- स्क्रीन के कंट्रास्ट लेवल का कम होना

- सही नंबर का चश्मा न पहनना या निगाह कमजोर होने पर भी कम नंबर का चश्मा लगाना

- स्ट्रेस, थकान

- बैठने का गलत तरीका

- अल्कोहल या ड्रग्स का इस्तेमाल



क्या हैं लक्षण



- आंखों में दर्द या चिड़चिड़ापन

- सिर में दर्द या माइग्रेन

- नजर कमजोर होते जाना और चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव

- पास से दूर नजर फोकस करने में दिक्कत होना

- कभी-कभी एक की दो चीजें नजर आना

- आंखों में सूखापन



रिस्क



आंखों में तनाव का कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है, लेकिन इसकी वजह से आपको जल्दी थकान हो सकती है और यह आपकी ध्यान से काम करने की क्षमता को भी कम कर सकती है। अगर आई स्ट्रेन दूर करने के तरीके अपना लिए जाएं तो भी कई बार आंखों के तनाव को दूर होने में कई दिनों का वक्त लग सकता है।



बचाव के तरीके



1. ऑफिस में खेलें 20-20



- अगर कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं या टीवी देख रहे हैं तो काम के साथ-साथ 20-20 भी खेलते रहें।



- इसके लिए 20 मिनट तक लगातार स्क्रीन पर फोकस करने के बाद 20 सेकंड के लिए नजर वहां से हटाएं और अपने से 20 फुट की दूरी पर स्थित किसी चीज पर फोकस करें। इसके अलावा टी20 की तरह स्ट्रैटजिक टाइम आउट भी लेते रहें यानी काम के दौरान हर घंटे आंखों को पांच मिनट के लिए आराम दें। हर दो घंटे के बाद सीट से उठ जाएं और कुछ चलने-फिरने का काम निबटा लें। मसलन फोन पर ऑर्डर देने की बजाय चाय लेने खुद कैंटीन चले जाएं, पानी की बोतल खुद भर लाएं आदि। ऐसा करने से आंखों को आराम मिलेगा। टीवी देख रहे हैं तो भी बीच-बीच में इसी तरह छोटे-छोटे ब्रेक लेते रहें।



- अगर आंखें पास की चीजों पर फोकस करती हैं तो उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है। ऐसे में बीच बीच में दूर की चीजों पर नजर फोकस करना जरूरी है।



- ड्राइविंग करते वक्त भी नजर लगातार सामने रहती है। ऐसे में बीच-बीच में नजर स्पीडोमीटर पर डालते रहना चाहिए।



2. ज्यादा चमक नहीं अच्छी



- नॉन-रिफ्लेक्टिव इंटरफेस का इस्तेमाल ज्यादा-से-ज्यादा करें। नॉन-रिफ्लेक्टिव इंटरफेस का मतलब है ऐसी सतह, जिससे कम-से-कम चमक आंखों पर पड़ती हो।



- अगर कुछ आप पेपर या मैगजीन से पढ़ सकते हैं तो उसे ऑनलाइन पढ़ने की कोशिश न करें। पेपर पर पढ़ने से स्क्रीन पर पढ़ने के मुकाबले आंखों की मसल्स को कम मेहनत करनी पड़ती है और उन पर चमक नहीं पड़ती।



- मोबाइल पर हालांकि ज्यादा देर नजर टिकाने की कम जरूरत पड़ती है, लेकिन आजकल तमाम फीचर्स से लैस मोबाइल फोंस आ रहे हैं, जिनमें अकसर लोग लंबे समय तक नजरें जमाए रहते हैं। ऐसे में मोबाइल की स्क्रीन के रिफ्लेक्शन को कम करके रखें, जिससे आंखों पर कम चमक पड़े।



3. कंप्यूटर हो ऐसा



- कंप्यूटर फ्लैट स्क्रीन वाले हों तो बेहतर है। उनसे आंखों को कम नुकसान पहुंचता है।



- कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हो सके तो कंप्यूटर स्क्रीन पर ऐंटि- ग्लेयर फिल्टर का इस्तेमाल करें। इसी तरह ऐंटि- ग्लेयर चश्मे का यूज भी किया जा सकता है, लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि आजकल कंप्यूटर स्क्रीन में ही ब्राइटनेस और कंट्रास्ट को ऐडजस्ट करने की सुविधा होती है। इसे अपनी आंखों और आसपास की रोशनी के हिसाब से ऐडजस्ट कर लें, तो आंखों के तनाव को खुद ही कम किया जा सकता है।



- कंप्यूटर की स्क्रीन उस तरफ करके न रखें, जहां से रोशनी का रिफ्लेक्शन स्क्रीन पर पड़ता हो।



- मॉनिटर के ऊपर जमी धूल को रोजाना साफ करें।



- कंप्यूटर पर काम करते वक्त रोशनी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।



- कंप्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन आपकी आंखों से भरपूर दूरी पर होनी चाहिए। यह दूरी 20 इंच के करीब रख सकते हैं।



- फ्लिकर को कम करने के लिए स्क्रीन की रिफ्रेश रेट को 70 हर्ट्ज के आसपास रखना चाहिए। इसे सेट करने के लिए कंप्यूटर स्क्रीन पर राइट क्लिक करें। properties में जाएं। फिर यह रूट फॉलो करें settings-advance-monitor यहां स्क्रीन रिफ्रेश रेट को सेट कर सकते हैं।



4. एलसीडी बेहतर



- जिस जगह टीवी देख रहे हैं, वहां रोशनी की भरपूर व्यवस्था होनी चाहिए।



- टीवी देखते वक्त सुनिश्चित करें कि रोशनी का स्त्रोत आपकी साइड नहीं, टीवी की साइड में हो। मतलब जब आप टीवी देखें तो प्रकाश भी उसी दिशा से आए जिस दिशा से टीवी की चमक आ रही है।



- सामान्य टीवी में फ्लिकरिंग रेट बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में टीवी देखने के लिए आंखों की पुतली को बार-बार छोटा-बड़ा करना पड़ता है और आंखों की मांसपेशियां जल्दी थकती हैं। ऐसे में एलसीडी का ऑप्शन बेहतर है। इसमें फ्लिकर रेट कम होता है और आंखों को आराम रहता है।



- लेटकर टीवी कभी न देखें। इससे आंखों का एंगल अलग-अलग हो जाता है, जिसकी वजह से दिक्कत हो सकती है।



5. नजर पर रहे नजर



- स्क्रीन पर लगातार काम करने वाले लोगों को अपनी नजर रेग्युलर चेक कराते रहना चाहिए।



- जिन लोगों को बेहद कम नंबर की जरूरत है, उनकी आंखों की मसल्स उस नजर की कमी की भरपाई करती हैं, जिससे उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है और थकान होती है। इसलिए चश्मे का अगर कम-से-कम नंबर भी है तो उसे जरूर लगाएं। 0.25 नंबर है, तो भी उसे जरूर लगाना चाहिए।



- अगर पहले से चश्मे का इस्तेमाल करते हैं तो भी यह चेक कराते रहें कि चश्मे का नंबर बढ़ तो नहीं गया है। गलत नंबर का चश्मा लगाना सिर और आंखों में दर्द होने की वजह हो सकता है।



- साल में एक बार आंखों का जनरल चेकअप जरूर करा लें।



6. एक्सरसाइज काम की



कंप्यूटर / टीवी देखने से आज के वक्त में हम पूरी तरह बच तो नहीं सकते, लेकिन उससे होने वाले नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं। ये टिप्स और एक्सरसाइज आपके काम की हो सकती हैं।



- दोनों हथेलियों को आपस में तकरीबन 30 सेकंड तक रगड़ें। हथेलियां हल्की गर्म हो जाएंगी। इनसे दोनों आंखों को बंद कर लें। आंखें इस तरह बंद करनी है, जिससे रोशनी आंखों तक न पहुंचे। इस स्थिति में दो मिनट रहें। इससे थकी आंखों को काफी आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को दिन में दो-तीन बार कर सकते हैं।



- हाथ के अंगूठे को आंखों से करीब 15 सेमी दूर रखें और अंगूठे के टिप पर फोकस करें। गहरी लंबी सांस लें और जाने दें। इसके बाद करीब चार मीटर की दूरी पर रखी किसी चीज पर आंखों को फोकस करें। फिर लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ दें। इस प्रॉसेस को तीन-चार बार दोहरा सकते हैं। दिन में दो-तीन बार ऐसा कर सकते हैं।



- पानी की दो कटोरियां ले लें। एक में गर्म पानी लें और दूसरी में बर्फीला ठंडा। दोनों कटोरियों में एक एक कपड़ा डालकर रखें। आंखों को बंद कर लें। पहले गर्म पानी में भिगोया हुआ कपड़ा आंखों पर आधे मिनट के लिए रखें। इसके बाद ठंडे पानी में भिगोया कपड़ा आंखों पर रखें। एक के बाद एक ऐसा करते जाएं। दो से तीन मिनट ऐसा कर लें। इसके बाद उंगलियों से आंखों की हल्की मसाज कर लें।



- आंखों को क्लॉकवाइज और ऐंटि-क्लॉजवाइज दिशा में घुमाएं। क्लॉकवाइज एक बड़ा जीरो बनाएं। ऐसा ही एक जीरो ऐंटि-क्लॉकवाइज बनाएं। 10-10 बार दोनों तरफ से कर लें। दिन में दो से तीन बार तक कर सकते हैं।



- काम के बीच-बीच में आंखें बंदकर बैठें। 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें। दरअसल, खुली आंखें ऊर्जा को बाहर फेंक रही होती हैं, जबकि बंद आंखें ऊर्जा को हासिल करती हैं। आंखें बंद करने से न सिर्फ आंखों को, बल्कि मन को भी सुकून मिलता है।



- मुंह में ठंडा पानी भरें और आंखों पर पानी के छपाके मारें। ध्यान रहे, छपाके सीधे आंख पर जाकर न लगें। इससे चोट लगने का खतरा रहता है। ऐसा दिन में तीन से चार बार कर लें। जब भी आंखें भारी महसूस हों, काम से ब्रेक लें और यह क्रिया कर लें।



- गुलाबजल से रुई को भिगो लें और उसे पांच मिनट तक आंखों पर रखें। इससे ठंडक मिलेगी और तनाव कम होगा।



- रोज सुबह हरी घास पर (ओस वाली) पर नंगे पैर आधा घंटा टहलें। आंखों की सारी गर्मी निकल जाएगी।



- आंखों की भवों को पकड़कर दबाते हुए आंख के चारों तरफ हल्की मालिश करें। इससे आंख के अंदर खून के बहाव में बढ़ोतरी होगी और आंखों का तनाव चला जाएगा।



- सीधे किसी भी आसन में बैठ जाएं। सीधा हाथ सामने रखें। अंगूठा आंखों के सामने रहे। इसे देखते रहें। अब अंगूठे को सीधे हाथ की तरफ ले जाएं। नजर अंगूठे के साथ-साथ चलती जाएगी। अंगूठा वापस बीच में ले आएं। इस क्रिया के दौरान गर्दन नहीं घूमनी चाहिए। अब यही क्रिया लेफ्ट हैंड से दोहराएं। तीन-चार राउंड कर लेने चाहिए। इस दौरान नजर अपलक रहे तो अच्छा है।



- सीधा हाथ सामने रखें। अंगूठा आंखों की तरफ लाएं। जितना देख सकें, देखें। इसमें भी नजर अपलक ही रहेगी।



- आंखों को जल्दी-जल्दी खोलें और बंद करें। ऐसा 15 से 20 बार कर सकते हैं।



- कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम आंखों के लिए बेहद अच्छे माने जाते हैं।



- इसके अलावा जलनेति और सूत्रनेति भी फायदेमंद हैं। इन क्रियाओं को किसी योग्य गुरु से सीखकर ही करना चाहिए।



- हरी सब्जियों का सेवन करें। नींद पूरी लें।



8. सामान्य दवाएं



ऐलोपैथी



- कुछ सामान्य दवाएं हैं, जिन्हें आंखों की थकान दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी दवाओं में रिफ्रेश टियर्स (Refresh Tears ) , जेंटील (Genteal ) और टियर प्लस (Tear Plus ) के नाम लिए जा सकते हैं। इन दवाओं की एक-एक बूंद को रात के वक्त आंखों में डाल सकते हैं या जब भी आंखों में थकान महसूस तो भी इसे यूज कर सकते हैं।



होम्योपैथी



होम्योपैथी में आई स्ट्रेन के लिए कुछ खास दवाएं दी जाती हैं। नीचे दी दवाओं को 30 नंबर की गोली और 30 नंबर की पावर के साथ ले सकते हैं।



- अगर आंखों में ड्राईनेस है और कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक देखने से आंखों में तनाव होता है तो फाइसोस्टिग्मा ( (Physostigma ) या रूटा (Ruta ) दवाएं दी जाती हैं।



- अगर आंखों में लाल होने, सूजने या पानी आने की समस्या है तो बेलाडोना (Belladonna) दी जाती है।



- अगर उम्र 40 से ऊपर है और आंखों में तनाव महसूस होता है तो अर्जेंटम नाइट्रिकम (Natrum Mur ) ली जा सकती है।



- आंखों में स्ट्रेन के साथ अगर सिर दर्द और उल्टी जैसी भी महसूस होती है तो नैट्रम म्यूर (Natrum Mur ) दी जा सकती है। ऐसे लोगों को नमक खाने की ज्यादा इच्छा होती है।



- इसके अलावा कुछ आंखों में डालने की दवाएं भी हैं। इन दवाओं को दिन में तीन बार एक-एक बूंद डाल सकता है। ये दवाएं हैं: यूफ्रेशिया (Euphrasia ) और सिनेरेरिया (Cinneraria ) की)। पहली दवा को किसी भी उम्र का शख्स डाल सकता है और दूसरी दवा 40 से ऊपर के लोगों को डालनी चाहिए।



जानिए प्रमुख बीमारियों के पथ्य-अपथ्य

जानिए प्रमुख बीमारियों के पथ्य-अपथ्य


प्रकाशित : 05/25/2008आरोग्य

बीमार होना कोई बड़ी बात नहीं है। जब भी खान-पान, रहन-सहन में थोड़ी-सी भी प्रतिकूलता हो जाती है, तभी इंसान बीमार पड़ जाता है। बीमार पड़ने पर चिकित्सक की सलाह पर रोगी औषधि का सेवन करता है, किन्तु पथ्य-अपथ्य की जानकारी न होने के कारण वह परहेज नहीं करता। परिणामस्वरूप रोगी पूरी तरह �� ीक होने में महीनों का समय ले लेता है।



�� ीक होने के बाद भी अगर रोगी पथ्य-अपथ्य पर ध्यान नहीं देता है, तो वह पुन बीमार हो सकता है। क्या खाया जाए और क्या न खाया जाए ताकि स्वस्थ रहें, इस विषय पर यहाँ प्रमुख जानकारियाँ दी जा रही हैं। रोगानुसार पथ्य-अपथ्य इस प्रकार हैं-



मोटापे में :- जौ, चना, गेहूँ, मूंग, मसूर, शहद, मट्�� ा, पत्तेदार सब्जियाँ, हरी तरकारियाँ, ताजे मी�� े फल एवं व्यायाम मोटापे के रोगियों के लिए पथ्य हैं, किन्तु चावल, दूध, मि�� ाई, माँस, शक्कर, दाल, उड़द, घी, शराब तथा दिन में सोना अपथ्य माना जाता है।



अजीर्ण-मन्दाग्नि में :- संतरा, नींबू, शहद, आँवला, मूंग की दाल का पानी, पुराना चावल, बथुआ, अनार, मूली, मक्खन, लहसुन, मट्�� ा, सरसों का तेल, पे�� ा, केला, हींग, अदरक, परवल, अजवाइन, करेला, मेथी, जीरा तथा धनिया इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए पथ्य है जबकि जुलाब लेना, उड़द की दाल, आलू, दूध, खोआ, माँस तथा मछली अपथ्य हैं।



गर्भधारण के बाद :- गेहूँ, चावल, जौ, मूंग, मक्खन, दूध, शहद, चीनी, आंवला, केला, आम, मी�� े फल, अंगूर, मुनक्का, ताज़ी हरी सब्जी, अंजीर, किशमिश गर्भवती महिला के लिए पथ्य माना जाता है, जबकि उड़द, मिर्च, खटाई, गरिष्�� भोजन, उपवास करना, वादी तथा कब्ज करने वाले पदार्थ तथा दिन में सोना आदि अपथ्य माना जाता है।



हृदय रोग में :- पुराने चावल, मूंग का पानी, परवल, लौकी, तुरई, केला, कच्चा आम, हरी मिर्च, अनार, लहसुन, मट्�� ा, अदरक, शहद, मुनक्का, माँस का रसा, अंगूर, शुद्ध जल आदि हृदय रोग से पीड़ित रोगी के लिए पथ्य हैं, जबकि खट्टे एवं गर्म पदार्थ, साग, शराब, भांग, गांजा आदि अपथ्य माने जाते हैं।



पीलिया (जॉण्डिस) में :- आम, कुंदरू, परवल, केला, पे�� ा, चौलाई, मट्�� ा, लहसुन, प्याज, लौकी, तुरई, पपीता की सब्जी पीलिया रोगी के लिए पथ्य हैं, जबकि उड़द, हींग, सरसों के पत्तों का साग, दूध, हल्दी, खटाई, मि�� ाई एवं अधिक नमक अपथ्य हैं।



अतिसार में :- पुराना चावल, मसूर की दाल, अरहर की दाल का पानी, बकरी का दूध, गाय का दूध, मट्�� ा, केले की सब्जी, शहद, जामुन, लसोड़ा, अदरक, बेल, चौलाई का साग अतिसार के रोगियों के लिए पथ्य है। गेहूँ, उड़द, जौ, बथुआ, सेम, मकोय, आलू, आम, सहिजन, गुड़ मुनक्का, लहसुन, ककड़ी, खीरा, खटाई, कद्दू तथा लौकी अपथ्य हैं।



दमा में :- गेहूँ, जौ, पुराना चावल, बकरी का दूध, मक्खन, उड़द, शहद, बथुआ, चौलाई, मूली, पोई का साग, परवल,लहसुन नींबू, कुंदरू, मुनक्का दमा के रोगी के लिए पथ्य हैं। तेल, वनस्पति घी, कड़ाही के तले व्यंजन, दही, मट्�� ा, मक्का, बैंगन, अरबी, भिण्डी आदि अपथ्य माने जाते हैं।



प्रमेह में :- जौ, गेहूँ, परवल, गूलर, लहसुन, जामुन, खजूर, चावल, ताजा मट्�� ा, तरबूज पथ्य माना जाता है। उड़द, लोबिया, सिरका, खटाई, गुड़, तेल, मिर्च मसाला कब्जकारक पदार्थों को अपथ्य माना जाता है।



उल्टी (वमन) में :- धनिया, पुदीना, नींबू, शहद, आंवला, आम, बेर, आलू बुखारा, मुनक्का, पका कैथ, अनार, सौंफ, अजवायन, मिश्री, संतरा, मौसम्मी पथ्य माना जाता है, जबकि तुरई, कुंदरू, सरसों, उष्ण तथा चिकने पदार्थों को अपथ्य माना जाता है।



खाँसी में : नींबू, परबल, लहसुन, मुनक्का, शहद, बथुआ, घी, मकोय का साग, बकरी का दूध पथ्य माना जाता है, जबकि कब्जकारक पदार्थ, सरसों का तेल, लौकी, पोई का साग, आलू, खटाई एवं मछली आदि को अपथ्य माना जाता है।



पेट की कीड़ों में : बथुआ, लहसुन, सरसों का साग, केले की सब्जी, नीम की कोमल पत्तियों का साग, हल्का अन्न, जौ, पुराना चावल, मक्खन, पे�� ा, केला, परवल, मिश्री, जौ, घी, गाय का दूध, मूंग, आदि पथ्य है, जबकि उड़द, दही, साग, खटाई, मि�� ाई, हींग, तेल, गर्म पदार्थ आदि अपथ्य माना जाता है। पथ्य-अपथ्य का ध्यान रख कर स्वयं को लम्बे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।



desi dieter

ब्रेकफस्ट

ब्रेकफस्ट हमारे खाने का सबसे जरूरी और खास हिस्सा होता है। यह हमारे शरीर को दिन भर काम करने के लिए तैयार करता है। आमतौर पर लोग इस फैक्ट से अनजान होते हैं और ब्रेकफस्ट को इग्नोर कर देते हैं। ब्रेकफस्ट क्यों जरूरी है और अच्छा ब्रेकफस्ट किसे कहा जाता है, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह :




लंच में क्या बनेगा, डिनर में क्या खाना है... ये बातें आम परिवारों में खूब डिस्कस होती हैं लेकिन ब्रेकफस्ट में क्या बनेगा, इस पर चर्चा कम ही होती है। जो भी सामने दिखा, बना लिया या फिर चाय के साथ टोस्ट या बिस्कुट से ही काम चला लिया। आम परिवारों में ऐसा ही होता है क्योंकि हम लोग खाने में ब्रेकफस्ट को सबसे कम अहमियत देते हैं। ज्यादातर फोकस लंच और डिनर पर ही होता है। इसके पीछे यह सोच भी काम करती है कि कुछ देर बाद तो लंच करना ही है, फिर ब्रेकफस्ट इतना क्यों जरूरी?



सबसे जरूरी ब्रेकफस्ट



- ब्रेकफस्ट से करीब 10-12 घंटे पहले हमने आखिरी बार कुछ खाया होता है। आमतौर पर लोग सोने से 2-3 घंटे पहले डिनर करते हैं और उसके बाद 7-8 घंटे की नींद लेते हैं। सोकर उठने के बाद ब्रेकफस्ट करने तक भी घंटे-दो घंटे बीत जाते हैं, यानी 10-12 घंटे का फास्ट हो चुका होता है। ऐसे में सुबह शरीर को एनर्जी की जरूरत होती है, जिसके लिए खाना जरूरी है।



- ब्रेकफस्ट बेहद जरूरी होता है क्योंकि यह दिन का हमारा पहला खाना होता है। आमतौर पर सुबह 9 बजे से दोपहर 2-3 बजे तक ही हम सबसे ज्यादा ऐक्टिव होते हैं। ऐसे में इस दौरान तन और मन, दोनों का अलर्ट होना जरूरी है। इसके लिए एनर्जी की जरूरत होती है, जो खाने से मिलती है।



- अगर शरीर को ताजा एनर्जी नहीं मिलेगी तो वह रिजर्व एनर्जी की तरफ जाएगा। इससे शरीर पर लोड बढ़ता है और मेटाबॉलिज्म रेट (शरीर काम करने, यहां तक कि सोने, पढ़ने, बैठने आदि के लिए भी जितनी कैलरी इस्तेमाल करता है) कम हो जाता है। वजह, शरीर को महसूस होने लगता है कि उसके पास कुछ खाना नहीं आ रहा और पहले से रिजर्व खाना कम न पड़ जाए, इसलिए वह मेटाबॉलिज्म रेट कम कर देता है। साथ ही, रिजर्व एनर्जी में से वह शरीर के बाकी हिस्सों को सप्लाई कम कर दिमाग को न्यूट्रिशन वैल्यू भेजना शुरू कर देता है। इससे थकान महसूस होने लगती है।



- लंबे समय तक खाना नहीं खाने से पेट में एसिड बन जाता है, जिसकी वजह से एसिडिटी और अपच जैसी दिक्कतें हो जाती हैं।



ब्रेकफस्ट कब करें



उठने के बाद जितना जल्दी हो सके, ब्रेकफस्ट कर लेना चाहिए। असल में, ब्रेकफस्ट शब्द का मतलब भी यही है, यानी पिछले 10-12 घंटों से जो फास्ट चल रहा है, उसे खत्म करें। सुबह उठकर सबसे पहले एक गिलास पानी पिएं। उसके बाद जूस (फल खाना बेहतर) या चाय ले सकते हैं। इसके बाद ब्रेकफस्ट कर लें। उठने के डेढ़-दो घंटों के भीतर ब्रेकफस्ट कर लेना चाहिए। शुगर के मरीजों को तो फ्रेश होने के फौरन बाद कुछ खा लेना चाहिए।



कैसा हो ब्रेकफस्ट



- ब्रेकफस्ट ताजा होना चाहिए। रात का बासी खाना खाने से बचना चाहिए क्योंकि इस वक्त पेट साफ होता है और शरीर की अब्जॉर्ब करने की कपैसिटी काफी ज्यादा होती है। ऐसे में बासी खाने से शरीर को नुकसान ज्यादा होता है।



- ब्रेकफस्ट पोषक होना चाहिए। भारी और तले-भुने खाने की बजाय पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाएं, मसलन आलू के परांठों की बजाय मेथी के कम घी वाले परांठे खाएं। वाइट ब्रेड की बजाय मल्टिग्रेन ब्रेड खाएं।



- इसमें अनाज होना चाहिए। इसके लिए ओट्स (जई), दलिया, चपाती, वीट फ्लैक्स आदि ले सकते हैं। कॉर्नफ्लैक्स की बजाय वीट फ्लैक्स लेना बेहतर है।



- ब्रेकफस्ट में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट, तीनों होने चाहिए। कुछ लोग सिर्फ टोस्ट और चाय ले लेते हैं या सिर्फ फ्रूट्स ले लेते हैं। यह सही नहीं है। इनसे फौरी तौर पर शुगर तो मिलती है लेकिन बाद में बॉडी लो में चली जाती है और कुछ देर बाद फिर से भूख लग जाती है। इन चीजों से सिर्फ एनर्जी मिलती है, पूरा पोषण नहीं। इनकी जगह दलिया, पोहा, ओट्स जैसे कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट्स लेने चाहिए क्योंकि ये धीरे-धीरे शुगर रिलीज करते हैं। साथ में, प्रोटीन भी लेना चाहिए इसलिए दूध, पनीर, अंकुरित दालें या अंडा (वाइट वाला हिस्सा) ले सकते हैं। सुबह प्रोटीन लेने से एनर्जी की लगातार सप्लाई के साथ-साथ पेट भी भरा हुआ महसूस होता है और जल्दी भूख नहीं लगती। ब्रेकफस्ट के साथ ऑरेंज जूस ले सकते हैं क्योंकि इसमें विटामिन-सी होता है, जो पोषक तत्वों को बॉडी में अब्जॉर्ब करने में मदद करता है। इसी तरह फैट के लिए भीगे हुए पांच बादाम लेना बेहतर है।



- रोजाना एक तरह के ब्रेकफस्ट की बजाय अलग-अलग तरह का ब्रेकफस्ट करें। इससे टेस्ट भी बना रहता है और शरीर को सारे पोषक तत्व मिल जाते हैं। एक चीज में जिन तत्वों की कमी होती है, दूसरी चीज उस कमी को पूरा कर देती है।



- बेहतर होगा अगर ब्रेकफस्ट के साथ तरल पदार्थ न लें। पीना ही चाहें तो ग्रीन टी, वेजिटेबल जूस, छाछ या दूध ले सकते हैं।



क्या न खाएं



- ब्रेकफास्ट के साथ चाय न पिएं। चाय में टैनिन और कैफीन होते हैं, जो पोषक तत्वों (खासकर कैल्शियम और आयरन) को बॉडी में अब्जॉर्ब नहीं होने देते। चाय पीनी है तो ब्रेकफास्ट से आधा-एक घंटा पहले या बाद में पिएं।



- सुबह-सुबह नॉनवेज न खाएं क्योंकि उस वक्त सिस्टम बिल्कुल फ्रेश होता है और हेवी प्रोटीन खाने से एसिडिटी या गैस हो सकती है। साथ ही लिवर पर जोर भी पड़ सकता है। खाना ही चाहें तो चिकन या फिश के एक-दो पीस खा सकते हैं।



- रिफाइंड या प्रोसेस्ड चीजें न खाएं जैसे कि नूडल्स, पित्जा, बर्गर आदि। बहुत ठंडी चीज न खाएं, न ही ठंडा दूध पिएं। हमारे शरीर का डाइजेशन टेंपरेचर करीब 37 डिग्री होता है। बेहद ठंडा खाने से डाइजेशन सिस्टम को नुकसान होता है।



- मैदा और सूजी से बनी चीजों (काठी रोल, उपमा, उत्पम आदि) को बेहतर ऑप्शन नहीं माना जाता क्योंकि ये रिफाइंड आटा हैं, लेकिन बिना घी के बनाया जाए तो कभी-कभी ले सकते हैं।



- कॉर्न फ्लैक्स की बजाय वीट या ओट्स फ्लैक्स बेहतर हैं क्योंकि इनमें फाइबर ज्यादा होता है।



फायदे तमाम



- ब्रेकफस्ट करने से शरीर का मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है। जिनका मेटाबॉलिज्म रेट अच्छा होता है, उनकी कैलरी ज्यादा जलती हैं और शरीर पर एक्स्ट्रा चर्बी नहीं चढ़ती।



- जो बच्चे ब्रेकफस्ट करते हैं, उनकी मानसिक क्षमता काफी अच्छी होती है और वे स्कूल में एक्टिव रहते हैं।



- ब्रेकफस्ट न करने से शरीर में कॉलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बढ़ता है। दरअसल, ब्रेकफास्ट न करने से शरीर पहले से जमा (रिजर्व) ग्लूकोज का इस्तेमाल करता है। जो ग्लूकोज बच जाता है, वह फैट के रूप में जमा हो जाता है और कॉलेस्ट्रॉल व मोटापा बढ़ता है, जबकि खाने से मिलनेवाला ताजा ग्लूकोज फौरन इस्तेमाल हो जाता है।



- ब्रेकफस्ट करने से ज्यादा एनर्जी का अनुभव होता है और बीच-बीच में भूख नहीं लगती। इस तरह बिंज ईटिंग (बार-बार छिट-पुट खाना) से दूर रहते हैं।



- आजकल लोग इतने बिजी रहते हैं कि लंच या तो छूट जाता है या काफी लेट होता है। ऐसे में ब्रेकफास्ट ढंग से करना और भी जरूरी है। इससे पेट में एसिड भी नहीं बनता।



कितना फासला जरूरी



- एक्सरसाइज करने के कम-से-कम 30-45 मिनट बाद ब्रेकफस्ट करें। जब हम एक्सरसाइज करते हैं तो खून का दौरा पैरों और दूसरे हिस्सों में जाने लगता है। पाचन के लिए खून के दौरे का पेट की तरफ होना जरूरी है, इसलिए एक्सरसाइज और खाने के बीच फर्क होना चाहिए।



- अगर खाने के बाद सैर (ब्रिस्क वॉक) करना चाहें तो भी डेढ़-दो घंटे का फासला जरूर रखें।



- ब्रेकफस्ट और लंच के बीच में 4-5 घंटे का फर्क होना चाहिए। इस बीच स्नैक्स ले सकते हैं, जैसे कि फल, अंकुरित दालें, छाछ, मुरमुरे, पोहा, सलाद आदि। जो किसी वजह से ब्रेकफास्ट और लंच के बीच ज्यादा फासला नहीं रख पाते, उन्हें बीच में स्नैक्स नहीं लेना चाहिए।



ब्रंच का फंडा



हाल के दिनों में ब्रंच (ब्रेकफस्ट और लंच साथ) काफी चलन में है, लेकिन यह हेल्दी आदत नहीं है क्योंकि इससे अगली बार के खाने में काफी अंतर आ जाता है। हालांकि जो लोग शिफ्ट में काम करते हैं या रात में बहुत देर से सोते हैं, वे ब्रंच कर सकते हैं। यह ब्रेकफस्ट के मुकाबले हेवी होता है। इसमें परांठा-सब्जी, रोटी-सब्जी, काठी-रोल आदि खा सकते हैं। ब्रंच करने वाले लोगों को दो बार हल्के स्नैक्स लेने के बाद शाम को जल्दी डिनर कर लेना चाहिए।



कितनी कैलरी ब्रेकफस्ट से



हमारी दिन भर की कैलरी का एक-तिहाई हिस्सा ब्रेकफस्ट से मिलना चाहिए। मसलन, अगर दिन में 1800-2000 कैलरी लेनी हैं तो करीब 600-700 ब्रेकफस्ट से मिलनी चाहिए। इतनी ही लंच से और करीब 100-100 कैलरी दो बार के स्नैक्स से लेनी चाहिए। बची हुई कैलरी डिनर से लेनी चाहिए। डिनर सबसे हल्का होना चाहिए। वैसे, अगर ज्यादा एक्टिव रहते हैं तो ज्यादा कैलरी की जरूरत होती है, जबकि डेस्क जॉब में हैं, यानी दौड़-भाग ज्यादा नहीं करनी होती तो 1500 से 1800 कैलरी काफी हैं। आमतौर पर पुरुषों को महिलाओं से 300-400 कैलरी ज्यादा की जरूरत होती है।



ध्यान दें जरा



कभी भी पेट भरकर न खाएं। सब कुछ इकट्ठा लेने के बजाय ब्रेक करके लें और हर तीन घंटे में कुछ-न-कुछ खाते रहें, वरना मेटाबॉलिज्म रेट डिस्टर्ब होता है। जैसे कि सलाद खाने की बजाय अलग-से स्नैक्स टाइम में ले सकते हैं। लंच में दही खाने की बजाय बाद में हल्का नमक मिलाकर छाछ ले सकते हैं। ऑफिस में हैं तो साथ में चना, स्प्राउट्स आदि रखें। बादाम, बिना नमक का पिस्ता, मूंगफली और अखरोट आदि नट्स को मिलाकर भी रख सकते हैं और बीच-बीच में खाएं।



टिफिन कैसा हो



स्कूल जाने वाले बच्चों का टिफिन अच्छा होना चाहिए क्योंकि वे अक्सर सुबह ढंग से ब्रेकफस्ट नहीं कर पाते। आमतौर पर 11 बजे के करीब लंच ब्रेक में ही उनका पहला खाना होता है। बच्चों के टिफिन में मेथी या पालक परांठा, दाल परांठा, ढोकला, वेज सैंडविच, पोहा आदि होना चाहिए। साथ में, कोई मौसमी फल भी दें।



ब्रेकफास्ट के बेस्ट आइटम



1. वेज/पनीर/ स्प्राउट्स सैंडविच + दूध/छाछ



सैंडविच के लिए मल्टिग्रेन ब्रेड और खूब सारी ताजा सब्जियां लें। पनीर डबल टोंड दूध से बना होना चाहिए। टेस्टी होने के साथ-साथ सैंडविच पोषण से भी भरपूर होता है क्योंकि इसमें फाइबर, विटामिन ई और बी, आयरन, मैग्निशियम और जिंक होता है। होल-वीट ब्रेड इस्तेमाल करनी चाहिए। इसमें फैट काफी कम होता है। ताजा सब्जियों या पनीर की स्टफिंग से सैंडविच कंप्लीट ब्रेकफस्ट बन जाता है। साथ में, दूध से कैल्शियम, विटामिन ए और बी, प्रोटीन, जिंक, पोटैशियम और फॉस्फोरस मिलता है।



2. स्टफ्ड रोटी + दूध/दही



अनाज में फाइबर और प्रोटीन भरपूर होते हैं और फैट बहुत कम होता है। गेहूं के आटे के साथ सोयाबीन, रागी या जई का आटा मिलाकर मूली, पालक, मेथी, गाजर आदि सब्जियां भरकर रोटियां बनाएं। परांठे खाने का मन हो तो बिल्कुल हल्का घी लगाएं लेकिन बेहतर रोटी खाना ही है। इससे देर तक एनर्जी मिलती है और खूब सारा फाइबर होने के कारण डाइजेशन भी आसानी से हो जाता है।



3. वेज दलिया + दही या दूध और दलिया



दलिया को आप चाहें तो दूध में बना लें या पानी में बनाकर ऊपर से दूध या दही मिला लें या फिर सब्जियों के साथ बना लें, यह हर तरीके से काफी पौष्टिक ब्रेकफस्ट है। कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, मिनरल से भरपूर दलिया आसानी से पच भी जाता है। गेहूं के अलावा रागी का दलिया भी बना सकते हैं। इसमें बाकी चीजों के मुकाबले आयरन काफी ज्यादा होता है। यह बीपी कम रखता है और अस्थमा के अलावा लिवर और दिल की समस्याओं से बचाता है। शुगर के मरीजों के लिए यह काफी फायदेमंद है।



4. ओट दलिया + दो एग वाइट



ओट (जई) हमारे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इसमें फाइबर काफी ज्यादा होता है। इसमें ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी होते हैं, जो खून जमने से रोकते हैं और दिल की बीमारियों से भी बचाते हैं। ओट इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार है और शुगर व कॉलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखता है। इससे लंबे समय तक पेट भरा होने का अहसास भी होता है और बीच-बीच में छिट-पुट खाने की जरूरत महसूस नहीं होती। साथ में, प्रोटीन से भरपूर दो अंडों का वाइट हिस्सा भी ले सकते हैं।



5. ऑमलेट/ उबला अंडा + ब्रेड स्लाइस



अंडे में प्रोटीन और विटामिन, ए, बी व ई होते हैं। कैल्शियम, पोटैशियम, सल्फर और मिनरल्स भी खूब होते हैं। सल्फर बालों और नाखूनों के लिए काफी फायदेमंद है। बच्चों को पूरा अंडा दे सकते हैं, जबकि बड़े लोग अंडे का पीला वाला हिस्सा निकाल दें क्योंकि इसमें फैट काफी ज्यादा होता है। ऑमलेट बनाएं तो घी बहुत कम इस्तेमाल करें और इसमें सब्जियां डाल लें। साथ में, एक या दो ब्रेड स्लाइस ले सकते हैं।



6. बेसन/ मूंग दाल का चीला + दही/लस्सी



बेसन या मूंग दाल का चीला अच्छा ब्रेकफस्ट माना जाता है। चीले के घोल में गाजर, शिमला मिर्च, बींस जैसी सब्जियां बारीक काट कर डाल लें या फिर अंदर पनीर की स्टफिंग कर लें। चीला बनाते हुए घी/तेल का इस्तेमाल बहुत कम करें। चीला के साथ छाछ या दही लें। पेट लंबे समय तक भरा-भरा रहेगा।



7. इडली + सांभर + दही



चावल से बनी इडलियों में कार्बोहाइइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल खूब होते हैं। इनमें कैलरी काफी कम और एनर्जी काफी ज्यादा होती है। साथ ही, आसानी से पच भी जाती हैं। सांभर के साथ खाना बेहतर है क्योंकि इसके जरिए सब्जियां और दाल का पोषण भी मिल जाता है। इडली का घोल बनाने में मेहनत लगती है इसलिए एक बार बनाकर इसे तीन-चार दिन यूज कर सकते हैं क्योंकि यह फ्रिज में चार दिन तक खराब नहीं होता।



8. स्प्राउट्स + ब्रेड + छाछ



स्प्राउट्स यानी अंकुरित दालों की चाट बनाकर सुबह-सुबह खाना सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा है। स्प्राउट्स को ब्रेड के अंदर भरकर सैंडविच भी बना सकते हैं। स्प्राउट्स के साथ दही या छाछ अच्छा कॉम्बिनेशन हो सकता है। एनर्जी से भरपूर स्प्राउट्स में फैट काफी कम होता है। साथ में, होल वीट या मल्टि-ग्रेन ब्रेड ले लें, जिनसे लंबे समय तक पेट भरा होने का अहसास होता है। इसके अलावा छाछ भी ले सकते हैं।



9. ओट्स/वीट फ्लैक्स + दूध



किसी भी रूप में अनाज खाने से शरीर को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और फाइबर मिलते हैं। खास यह है कि इनमें फैट काफी कम होता है, जबकि आयरन, मैग्निशियम, कॉपर, फॉस्फोरस आदि मिनरल अच्छी मात्रा में होते हैं। रिसर्च कहती हैं कि जो लोग ब्रेकफस्ट में अनाज खाते हैं, उनमें बीमारियों से लड़नेवाले ऐंटि-ऑक्सिडेंट ज्यादा पाए जाते हैं। इनसे देर तक भूख नहीं लगती। साथ में दूध पीने से कैल्शियम की कमी भी पूरी होती है।



10. पोहा/उपमा + दही/छाछ



पोहा या उपमा को अकेले बहुत अच्छा ब्रेकफस्ट नहीं माना जाता लेकिन खूब सारी सब्जियां और नट्स मिलाने से ये काफी पोषक हो जाते हैं। तब इनसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और विटामिन मिलता है। सूजी में सोडियम काफी होता है और कॉलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता। इनके साथ में छाछ या दही ले सकते हैं।



ये भी फायदेमंद



ब्रेकफस्ट में सिर्फ फल खाने की सलाह नहीं दी जाती लेकिन बाद में स्नैक्स में फलों की चाट बनाकर खा सकते हैं या फिर अगर ब्रेकफस्ट में कुछ और हल्का खा रहे हैं तो साथ में फ्रूट चाट खा सकते हैं। फल विटामिन, मिनरल, फाइबर, प्रोटीन के अलावा ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी भरपूर होते हैं। कई सारे फल एक साथ मिलाकर खाना और अच्छा है। साथ में ताजा दही भी मिला सकते हैं, जिससे कैल्शियम बढ़ जाता है और स्वाद भी बढ़ जाता है। फल ताजे और मौसमी हों तो बेहतर है।



नोट: आयुर्वेद में नमकीन खाने के साथ दूध के कॉम्बिनेशन को सही नहीं मानता। जो लोग इसमें भरोसा करते हैं, उन्हें दूध की बजाय छाछ लेनी चाहिए। बड़ों को दूध डबल टोंड लेना चाहिए और छाछ भी डबल टोंड दूध की बनी होनी चाहिए।






शनिवार, 18 जून 2011

Height Healthy Weight Range (Pounds) Kilograms


4'10" 109-121 49-54

5'0" 113-126 51-57

5'1" 115-129 52-58

5'2" 118-132 53-59

5'3" 121-135 54-61

5'4" 124-138 56-62

5'5" 127-141 57-63

5'6" 130-144 58-65

5'7" 133-147 60-66

5'8" 136-150 61-68

5'9" 139-153 63-69

5'10" 142-156 64-70

5'11" 145-159 65-72

6'0" 148-162 67-73

womwn--Healthy Weight Range

Women




Height               Healthy Weight Range (Pounds)                        Kilograms

4'10"                             109-121                                                     49-54

5'0"                               113-126                                                     51-57

5'1"                                115-129                                                    52-58

5'2"                                118-132                                                     53-59

5'3"                                121-135                                                     54-61

5'4"                                124-138                                                      56-62

5'5"                                 127-141                                                     57-63

5'6"                                 130-144                                                      58-65

5'7"                                 133-147                                                      60-66

5'8"                                 136-150                                                      61-68

5'9"                                  139-153                                                      63-69

5'10"                                 142-156                                                     64-70

5'11"                                 145-159                                                     65-72

6'0"                                   148-162                                                      67-73





सोमवार, 21 मार्च 2011

32 नॉट आउट


ओरल हेल्थ का सरोकार सिर्फ हमारे मुंह से नहीं, बल्कि पूरे शरीर की सेहत से है। कम ही लोग जानते हैं कि खराब दांत और बदबूदार सांसें दिल की बीमारियों तक की वजह बन सकते हैं। लेकिन थोड़ी देखभाल से आप चमकीले दांत और महकती सांसें पा सकते हैं। वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे के मौके पर एक्सपर्ट्स से बात करके मुंह की सेहत को दुरुस्त रखने के नुस्खे बता रही हैं प्रियंका सिंह-

करीब 90 फीसदी लोगों को कभी-न-कभी दांतों से संबंधित परेशानी होती है। लेकिन ढंग से साफ-सफाई के साथ-साथ हर छह महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें तो दांतों की ज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है। दांतों में ठंडा-गरम लगना, कीड़ा लगना (कैविटी), पायरिया (मसूड़ों से खून आना), सांस में बदबू और दांतों का बदरंग होना जैसी बीमारियां आम हैं।

दांत में दर्द
दांत का दर्द बीमारी नहीं, बीमारी का लक्षण है। दर्द की अलग-अलग वजहें हो सकती हैं, मसलन कैविटी, मसूड़ों में सूजन, ठंडा-गरम लगना आदि। ज्यादातर मामलों में दर्द की वजह कैविटी होती है। दरअसल, मीठी और स्टार्च वाली चीजों से बैक्टीरिया पैदा होता है, जिससे दांतों खराब होने लगते हैं और उनमें सूराख हो जाता है। इसे ही कीड़ा लगना या कैविटी कहते हैं। लार और दांतों का गठन भी कई बार कैविटी की वजह बन जाता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई न करने पर उन पर परत जम जाती है। इसमें जमा बैक्टीरिया टॉक्सिंस बनाते हैं, जो दांतों को नुकसान पहुंचाते हैं।

कैसे बचें : कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार-बार न खाएं। खाने के बाद ब्रश करें। ऐसा मुमकिन न हो तो अच्छी तरह कुल्ला करें।

कैसे पहचानें: अगर दांतों पर काले-भूरे धब्बे नजर आने लगें, खाना फंसने लगे और ठंडा-गरम लगने लगे तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में फौरन डॉक्टर के पास जाएं। शुरुआत में ही फिलिंग कराने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।

राहत के लिए: अगर दांत में दर्द हो रहा हो तो बहुत ठंडा-गरम न खाएं। इसके अलावा, एक कप गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक डालकर कुल्ला करें। इससे कैविटी में फंसा खाना निकल जाएगा। जहां दर्द है, वहां लौंग के तेल में भिगोकर रुई का फाहा रख सकते हैं। यह तेल केमिस्ट से मिल जाता है। ध्यान रहे कि तेल दर्द की जगह पर ही लगे, आसपास नहीं। तेल नहीं है, तो लौंग भी उस दांत के नीचे दबा सकते हैं। जरूरत पड़ने पर पैरासिटामोल, कॉम्बिफ्लेम या आइबो-प्रोफिन बेस्ड इनालजेसिक ले सकते हैं। हालांकि कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह कर लें। कई लोग एस्प्रिन लेते हैं, जोकि ब्लीडिंग की वजह बन सकती है। जिन्हें अस्थमा है, वे कॉम्बिफ्लेम की बजाय वोवरॉन लें। जितना जल्दी हो सके, डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।

दूसरी वजहों के लिए: अगर दर्द मसूड़ों में सूजन की वजह से है तो भी गुनगुने पानी में नमक या डिस्प्रिन डालकर कुल्ला करने से राहत मिल सकती है। मसूड़ों के दर्द में गलती से भी लौंग का तेल न लगाएं। इससे मसूड़ों में जलन हो सकती है और छाले बन सकते हैं। फौरी राहत के लिए ऊपर लिखे गए पेनकिलर्स में से ले सकते हैं लेकिन जल्द-से-जल्द डॉक्टर के पास जाकर प्रॉपर इलाज कराना बेहतर है।

सांस में बदबू
आमतौर पर लोग मानते हैं कि पेट खराब होने या साइनस की प्रॉब्लम होने से सांस में बदबू होती है, लेकिन 95 फीसदी मामलों में मसूड़ों और दांतों की ढंग से सफाई न होने और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। खाने के बाद जब हम ढंग से दांत साफ नहीं करते तो खाने के बचे हुए हिस्सों पर बैक्टीरिया सल्फर कंपाउंड बनाता है, जिससे सांस में बदबू हो जाती है। यह बदबू मुंह से अंदर, जीभ के पीछे वाले हिस्से और मसूड़ों के निचले हिस्से में बनती है। लहसुन, प्याज जैसी चीजें भी बदबू की वजह बनती है। पेट में कीड़े होने, सही से डाइजेशन न होने, गले में इन्फेक्शन होने और दांतों में कीड़ा लगने पर भी सांस में बदबू हो सकती है। जिस वजह से सांस में बदबू है, उसी के मुताबिक इलाज किया जाता है। फिर भी फौरन राहत के लिए सौंफ, लौंग, तुलसी या पुदीने के पत्ते चबा सकते हैं। जिनको सांस में बदबू की शिकायत रहती है, उन्हें मिंट आदि की शुगर-फ्री चुइंग-गम चबानी चाहिए। इससे ज्यादा स्लाइवा बनता है, जो बदबू को कम करता है। ज्यादा पानी पीने से भी स्लाइवा का मोटापन कम होता है और सांस की बदबू कम होनी की उम्मीद होती है।

कब और कैसे करें ब्रश
यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं होता इसलिए दिन में कम-से-कम दो बार ब्रश जरूर करें। रात में सोने से पहले और सुबह उठकर ब्रश जरूर करें। अगर रात में ब्रश किया है तो नाश्ता करने के बाद भी ब्रश कर सकते हैं। दांतों को तीन-चार मिनट ब्रश जरूर करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं, जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं, उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है। दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे-धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी-बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। जीभ को भी टंग क्लीनर के बजाय ब्रश से साफ करना चाहिए। टंग क्लीनर इस्तेमाल करें तो इस तरह कि ब्लड न निकले। उंगली या ब्रश से धीरे-धीरे मसूड़ों की मालिश करें। इससे वे मजबूत होते हैं।

कैसा ब्रश इस्तेमाल करें
ब्रश (सेंसटिव) सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। हार्ड ब्रश या मीडियम ब्रश से दांत कट जाते हैं। दो-तीन महीने में या ब्रशल्स फैलने पर उससे पहले ही ब्रश बदल देना चाहिए। रोजाना गर्म पानी में भिगोने से ब्रशल्स सॉफ्ट बने रहते हैं।

फ्लॉसिंग कब करें
दांतों के बीच में फंसे खाने के कणों को निकालने के लिए रोजाना फ्लॉसिंग (प्लास्टिक के धागे से) जरूर करें। हालांकि कुछ डॉक्टर मानते हैं कि खाना फंसने पर ही फ्लॉसिंग करें, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर रोजाना फ्लॉसिंग की सलाह देते हैं। इससे दांतों के उस हिस्से की भी सफाई हो जाती है, जहां ब्रश नहीं पहुंच पाता।

कौन-सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करें
दांतों की सफाई में टूथपेस्ट लुब्रिकेशन और ताजगी का काम करता है। टूथपेस्ट में फ्लॉराइड हो तो वह दांतों को कीड़ा लगने से बचाता है। लेकिन ज्यादा फ्लोराइड से भी दांतों पर दाग भी पड़ने लगते हैं। 6 साल से छोटे बच्चों को भी फ्लोराइड वाला पेस्ट यूज नहीं करना चाहिए। जिनको कैविटी ज्यादा होती हैं, वे जरूर फ्लोराइडवाला टूथपेस्ट यूज करें। मटर के दाने के बराबर टूथपेस्ट काफी होता है।

टूथपाउडर और मंजन: टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं, बल्कि ब्रश से। मंजन दांतों की ऊपरी परत को घिस देता है।

दातुन: दातुन के इस्तेमाल से बचना चाहिए। कभी-कभार नीम, बबूल या जामुन (खासकर शुगर के मरीज) की दातुन कर सकते हैं। दातुन में मौजूद एस्ट्रिंजेंट व टोनर से फौरी तौर पर अच्छा महसूस होता है, लेकिन दातुन पूरी तरह सफाई कर पाती है। ज्यादा यूज करने से दांतों का इनमेल घिस जाता है और मसूड़ों में भी चोट लग सकती है।

माउथवॉश : माउथवॉश के इस्तेमाल को लेकर एक राय नहीं है। डॉक्टर सांस की बदबू आदि में माउथवॉश यूज करने की सलाह देते हैं तो डॉक्टर से जरूर पूछें कि कितने दिन यूज करना है? ज्यादा यूज करने से इनमें मौजूद केमिकल दांतों पर दाग की वजह बन सकते हैं। ध्यान रहे कि अल्कोहल बेस्ड माउथवॉश बिल्कुल यूज न करें। हेक्सिडीन, प्लाक्स, पैरियोगार्ड आदि माउथवॉश यूज कर सकते हैं। माउथवॉश रात में सोने से पहले इस्तेमाल करें।

छालों के लिए
टेंशन, एलर्जी, विटामिन की कमी, पाचन क्रिया सही न होना, किसी दांत का बेहद तीखा होना, खराब ब्रश से मुंह में कट लगना, डेंचर का बेहद शार्प होना या मुंह में चोट लगना आदि छालों की वजह हो सकती हैं। आमतौर पर छाले 6-7 दिन में खुद ही ठीक हो जाते हैं।

क्या करें: पानी खूब पिएं। डाइजेशन सुधारने की कोशिश करें। शहद या ग्लिसरीन में थोड़ा बोरिक पाउडर मिलाकर भी छालों पर लगा सकते हैं। ध्यान रखें कि यह मिक्सचर सिर्फ छालों पर लगाएं। ग्लिसरीन बेस्ड गम पेस्ट या दर्द में राहत देनेवाला जेल लगा सकते हैं। साथ में, सुबह-शाम पांच दिन तक मल्टी-विटामिन कैप्सूल (बी कॉम्पलेक्स या विटामिन सी) का कैप्सूल खाएं।

ध्यान दें : मुंह काफी सेंसटिव है। इसमें कोई भी चोट या कैविटी बड़ी बीमारी की वजह बन सकता है। 15 दिन तक छाले ठीक न हों तो डॉक्टर के पास जरूर जाएं।

ठंडा-गरम लगने पर

दांत के टूटने-पीसने, किरकिराने, मसूड़ों की जड़ें दिखने पर ठंडा-गरम लगने लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस जाते हैं और मुंह में संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

क्या करें : ज्यादा ठंडा-गरम न खाएं। आमतौर पर डॉक्टर ठंडा-गरम लगने पर मेडिकेटिड टूथपेस्ट व माउथ वॉश की सलाह देते हैं। इनमें कोलगेट सेंसटिव, सिक्वेल एडी आदि यूज कर सकते हैं। अगर हफ्ते-10 दिन इस्तेमाल करने पर भी संवेदनशीलता बनी रहती है तो डॉक्टर को दिखाएं। ये पेस्ट या माउथवॉश एक महीने से ज्यादा यूज न करें।


घरेलू नुस्खे
चमकते दांतों के लिए क्या करें
- बेकिंग सोडा और हाइड्रोजन परोक्साइज को मिलाकर पेस्ट बना लें। हफ्ते में एक बार इससे दांत साफ करें।
- संतरे के छिलके को अंदर की तरफ से हल्के हाथ से दांतों पर रगड़ने से दांत साफ हो जाते हैं। ऐसा कभी-कभी करें।
- नीबू का रस और सेंधा नमक बराबर मात्रा में मिला लें। दांतों के पीले हिस्से पर धीरे-धीरे रगड़ें। इसे मसूड़ों पर मलना ज्यादा फायदेमंद है।
- एक कप पानी में आधा चम्मच सेंधा नमक मिला लें। रात में सोने से पहले इससे कुल्ला करें।
- दर्द होने पर उस दांत पर लौंग का तेल लगा सकते हैं या लौंग दबा सकते हैं। मसूड़ों पर लौंग करने से वाइट पैच हो सकता है।
- तुलसी का पेस्ट बनाएं। उसमें थोड़ी चीनी मिला लें। अगर डायबीटीज है तो चीनी की बजाय शहद मिला लें। धीरे-धीरे मसूड़ों पर मसल लें। सांस और दांत दोनों अच्छे होंगे।
- सौंफ चबाएं से बदबू से फौरी राहत मिलती है।
- एक कप पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर गार्गल करें। शहद हीलिंग का काम करता है।

नोट : कोई भी तरीका हफ्ते में दो बार से ज्यादा इस्तेमाल न करें। फिटकरी या सोडा दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाते हैं। विटामिन-सी का ज्यादा इस्तेमाल भी सही नहीं है।

बच्चों के दांतों की देखभाल
छोटे बच्चों की दूध की बॉटल अच्छे से साफ करें। सोते हुए उनके मुंह में बोतल न छोड़ें। हाथ से धीरे-धीरे उनके मसूड़ों की मालिश करें। छह साल से नीचे के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट यूज न करने दें। उन्हें चॉकलेट या चूइंग-गम कम खानें दें।

दिल दा मामला है
ओरल हेल्थ अगर ठीक नहीं है तो दिल की सेहत भी खराब हो सकती है। हाल में हुई कई स्टडी इन दोनों के बीच कनेक्शन बताती हैं। स्टडी के मुताबिक हार्ट अटैक के 40 फीसदी मरीजों को मसूड़ों की दिक्कत पाई गई। असल में, जब दांत खराब होते हैं या मसूड़ों में सूजन होती है तो धमनियां सुकड़ जाती हैं। वजह, दांतों में मौजूद बैक्टीरिया ब्लड वेसल्स में जाकर उनमें भी प्लाक बना देते हैं और वे संकरी हो जाती हैं। दिल की बीमारियों के लिए रिस्क फैक्टर्स में डायबीटीज, हाइपर टेंशन, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग के साथ-साथ दांत खराब होना भी जुड़ गया है। यहां तक कि जिन महिलाओं को मसूड़ों की दिक्कत होती है, उनके मिस कैरिज या प्री-मैच्योर बच्चा होने की आशंका बढ़ जाती है।

टेंशन का दांतों पर असर
साफ-सफाई न रखने पर दांतों में दिक्कत होने के बारे में तो ज्यादातर लोग जानते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इससे अनजान हैं कि टेंशन का हमारे दांतों पर सीधा असर पड़ता है। मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है। सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है, वहीं मुस्कराहट से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है, जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से तेजाब भी बनता है, जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।

हार्वड यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक तनाव से ब्रुक्सिजम (नींद में दांत पीसना), ड्राई माउथ और बर्निंग माउथ सिंड्रोम जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। दांत पीसने की आदत से दांत टूट सकते हैं या सेंसटिव हो सकते हैं। सिरदर्द और जबड़ों में दर्द भी हो सकता है। इसके लिए रात में सोते हुए माउथगार्ड पहनें और सुबह उठकर मेडिटेशन करें।

मुंह सूखने की समस्या होने पर स्वाइवा कम हो जाता है। इससे स्वाद घट जाता है और भूख भी कम लगती है। दांतों में टूट-फूट बढ़ जाती है। लुब्रिकेशन की कमी से डेंचर लगाने में दिक्कत हो सकती है। दांतों में संवेदनशीलता बढ़ सकती है। बर्निंग माउथ सिंड्रोम (बीएमएस) में जीभ, होंठ, तालु या पूरे मुंह में जलन महसूस होती है। यह समस्या आमतौर पर उम्रदराज महिलाओं में होती है। इसमें मरीज को खाना तीखा लगता है, मुंह सूख जाता है और जीभ का हिस्सा सुन्न हो जाता है।

केस स्टडी
डॉ. तुली के मुताबिक, मेरे मसूड़ों पर काफी टारटर बनता था, जिससे क्रोनिक इन्फेक्शन हो गया और मसूड़ों से खून निकलने लगा। मुंह से बदबू के साथ-साथ मसूड़े भी घटने लगे। एक-दो दांत भी गिर गए। मुझे टेंशन रहती थी कि कहीं दिल पर तो बुरा असर नहीं पड़ रहा है। तभी मुझे आयुर्वेदिक गोली जी-32 (एलारसिन) की जानकारी मिली। मैंने इसे पीसकर मसूड़ों पर मसाज शुरू की, नीचे से ऊपर, और ऊपर से नीचे की ओर। मसाज करने से तुरंत फायदा हुआ। अब भी हफ्ते में दो बार करता हूं। यह टैब्लेट थोड़ी रफ है, इसलिए किसी बारीक टूथ पउडर में मिलाकर सॉफ्ट हाथों से करें।

क्या करें
- रोजाना दो बार ब्रश करें। सोने से पहले और जागने के बाद। हर बार कम से कम तीन मिनट तक जरूर ब्रश करें।
- जीभ को टंग क्लीनर या ब्रश से साफ करें।
- दांतों के बीच फंसी गंदगी को साफ करने के लिए फ्लॉस का इस्तेमाल करें।
- कुछ भी खाने-पीने के बाद कुल्ला करें।
- अगर रात में सोते हुए दांत चबाने की आदत है तो गार्ड्स पहनें। इससे दांत घिसेंगे नहीं।
- हर छह महीने में दांत जरूर चेक कराएं। हमारी सेहत पूरी तरह खाने और खाना दांतों की सेहत पर निर्भर है।
- शुगर फ्री चुइंग-गम चबाएं। यह स्वाइवा बढ़ाती है, मसल्स को मजबूत करती है और दांतों को भी साफ करती है।

क्या न करें
- दांतों पर कुछ भी रगड़े नहीं। दांतों पर रगड़ने से इनेमल खराब होने का खतरा होता है।
- हल्के हाथ से उंगलियों से मसूड़ों की मसाज नियमित रूप से करें।
- जंक और पैक्ड फूड ज्यादा न खाएं क्योंकि इनमें मौजूद शुगर कंटेंट पर बैक्टीरिया जल्दी अटैक करते हैं।
- बार-बार मीठा न खाएं। च्यूइंग-गम, टॉफी व दांतों में चिपकनेवाली चीजों से परहेज करें।
- बिस्कुट, चिप्स, ब्रेड जैसी सॉफ्ट चीजें न खाएं। कच्ची सब्जियां खाने से दांत मजबूत होते हैं।
- नीबू जैसी खट्टी चीजें ज्यादा न खाएं। इनसे दांतों पर बुरा असर पड़ता है।
- पान-तंबाकू, गुटका आदि के सेवन से बचें। चाय-कॉफी भी कम पिएं।
- ज्यादा कोल्ड ड्रिंक्स पीने से दांतों पर दाग-धब्बे आ सकते हैं।
- दांतों में धागे आदि न फंसाएं। न ही कोई नुकीली चीज दांतों के बीच डालें।
- खाली पेट न रहें। खाली पेट से सांसों में बदबू हो सकती है।

एक्सपर्ट्स पैनल
- डॉ. महेश वर्मा, प्रिंसिपल, मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज
- डॉ. स्मृति बौरी, एचओडी (साइथ रीजन), डेंटिस्ट डिपार्टमेंट, मैक्स हेल्थकेयर
- डॉ. जितेंद्र अरोड़ा, ओरल इम्प्लांटालॅजिस्ट और कॉस्मटॉलजिस्ट
- डॉ. रवि तुली, सीनियर कंसल्टंट, हॉलेस्टिक मेडिसिन, अपोलो हॉस्पिटल
- रुक्मणी नैयर, नैचरोपैथी एक्सपर्ट

कैसे घटाएं वजन

हाल के बरसों में मोटापे को लेकर लोग काफी सचेत हो गए हैं। जो लोग फिट हैं , वे वजन बढ़ने नहीं देना चाहते और जो मोटे हैं वे किसी भी तरह वजन घटाना चाहते हैं। कैसे घटाएं वजन ...

कोई मील न छोड़ें : अगर वजन घटाना चाहते हैं तो सबसे पहले जरूरी है कि कोई भी मील छोड़े नहीं। तीन प्रॉपर मील और बीच में दो स्नैक्स जरूर लें। अगर कोई मील छोड़ेंगे तो अगली बार ज्यादा खाएंगे , जोकि सही नहीं है।

ब्रेकफस्ट पर फोकस : दिन भर के खाने में सबसे ज्यादा फोकस ब्रेकफस्ट पर होना चाहिए। अक्सर लोग वजन कम करने की धुन में ब्रेकफस्ट नहीं लेते लेकिन रिसर्च कहता हैं कि अगर नियमित रूप से ब्रेकफस्ट लिया जाए तो लंबी अवधि में वजन कम होता है। नाश्ते या खाने में हमेशा एक जैसी चीजें न खाएं , बल्कि बदलते रहें। कभी दूध के साथ दलिया ले सकते हैं तो कभी वेज सैंडविच तो कभी पोहा या उपमा।

जल्द करें डिनर : दिन का खाना भी प्रॉपर होना चाहिए , जबकि डिनर सबसे हल्का। डिनर रात में 8 बजे तक कर लेना चाहिए। ऐसा संभव नहीं है तो भी सोने से दो घंटे पहले जरूर खाना खा लें। नहीं दाल , राजमा , चावल जैसी चीजें रात में नहीं खानी चाहिए क्योंकि ये आसानी से पचती नहीं हैं। अगर देर रात तक जागते हैं और भूख लगती है तो फ्रूट्स या सलाद खानी चाहिए। असल में रात में बेसिक मेटाबॉलिक रेट काफी कम होता है। ऐसे में खाना पच नहीं पाता।

वॉल्यूम : खाने में वॉल्यूम पर ध्यान रखें। यानी दो बिस्कुट की बजाय एक कटोरी उबला चना खाएं तो बेहतर है , क्योंकि दोनों में कैलरी करीब - करीब बराबर ही होती हैं। इसके बजाय बीन्स , सलाद , ढोकला , पनीर ( टोन्ड मिल्क का ), चना आदि लें।

नमक में करें कटौती : खाने में ऊपर से नमक न मिलाएं। वैसे , हेल्दी मतलब खाने का मतलब फीके खाने से नहीं है। परंपरागत मसाले न सिर्फ स्वाद बढ़ाते हैं , बल्कि उनमें माइक्रोन्यूट्रिएंट , ऐंटी ऑक्सिडेंट और फाइबर भी होते हैं। सिर्फ ध्यान रखें कि इन्हें भूनने के लिए ज्यादा तेल का इस्तेमाल न करें।

साबुत व छिलके वाली चीजें बेहतर : बिना छना आटा खाएं। गेहूं के साथ चने का आटा मिलाने से पाचन अच्छा होता है। गेहूं या जौ का आटा ( बिना छना ), ब्राउन ब्रेड , दलिया , कॉर्न या वीट फ्लैक्स , ब्राउन राइस व दालें आदि खाएं। अंकुरित अनाज व दालें विटामिन , मिनरल , प्रोटिन और फाइबर से भरपूर होती हैं।

स्नैक्स : प्रॉपर मील के बीच चिवड़ा , पोहा , ढोकला , सलाद , अंकुरित दालें , फल या सलाद खा सकते हैं। तेल और चीनी से परहेज करें। खाली कार्बोहाइड्रेट्स लेने से भूख जल्दी लगती है , इसलिए प्रोटीन भी खाने में शामिल करें।

मौसमी फल और सब्जियां : मौसमी फल और सब्जी खाएं। जूस के बजाय साबुत फल खाना बेहतर होता है। अलग - अलग सब्जी से अलग - अलग पोषक तत्व मिलते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं , इनमें मिनरल और विटामिन काफी तादाद में होते हैं।

सफेद से परहेज , रंगीन से प्यार : वजन कम करना चाहते हैं तो ज्यादातर सफेद चीजें ( आलू , मैदा , चीनी , चावल आदि ) कम करें और मल्टीग्रेन या मल्टीकलर खाने ( दालें , गेहूं , चना , जौ , गाजर , पालक , सेब , पपीता आदि ) पर जोर दें।

दूध , दही और पनीर : बिना फैट वाला दूध या दही खाएं। दूध में फैट कम करने के लिए उसमें पानी मिलाने से बेहतर है कि मलाई उतार ली जाए। पानी मिलाने से दूध में पोषक तत्व भी कम होते हैं। सोया से बना पनीर , दूध और दही खा सकते हैं। जिन्हें दूध या सोया प्रॉडक्ट से एलर्जी है , वे राजमा , नीबू , टमाटर , मेथी , पालक , बादाम , काजू , गोला जैसी चीजें खाकर कैल्शियम की कमी से बच सकते हैं।

पानी व अन्य तरल पदार्थ : दिन में 3- 4 लीटर पानी व तरल पदार्थ लें। पानी न सिर्फ फैट कम करता है , बल्कि शरीर से जहरीले तत्वों को भी निकालता है। यह भूख कम करता है और कब्ज रोकता है। खाने के 15 मिनट बाद घूंट - घूंट कर गर्म पानी पीना चाहिए। जब भी पानी पिएं , ठंडे या सादे की बजाय गुनगुने पानी को तरजीह दें। खाने की शुरुआत एक गिलास पानी , नारियल पानी , जूस , सूप , नीबू पानी या छाछ से करें।

चीनी और जंक फूड से तौबा : शुगर , जंक फूड , फास्ट फूड , मिठाइयां खाने की लिस्ट से निकाल दें। कैंडी , जेली , शहद , मिठाई और सॉफ्ट ड्रिंक्स से दूर रहें। इसी तरह बिस्कुट , केक , पेस्ट्री में काफी फैट और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट होता है , जो मोटापा बढ़ाता है।

तेल की धार : तला - भुना खाना न खाएं और ऊपर से मक्खन , ग्रेवी व ड्रेसिंग आदि न करें। खाने में तेल इस्तेमाल किए जाने वाला तेल बदलना बेहद जरूरी है। मसलन एक सप्ताह सनफ्लावर ऑयल लें तो दूसरे में सोयाबीन ऑयल यूज करें। या फिर एक वक्त का खाना एक तेल में पका सकते हैं तो दूसरे वक्त का किसी और तेल में। गिरियों में काफी फैट होता है। उन्हें खाएं जरूर मगर कम मात्रा में। लेकिन फैट कम करने का मतलब फैट फ्री डाइट से कतई नहीं है। फैट फ्री डाइट से जरूरी फैटी एसिड और फैट सॉल्युबल विटामिन ए , डी , ई और के की कमी हो जाती है। इस तरह की डाइट से लगातार भूख भी महसूस होती है। इसी तरह हेल्दी फैट खाना बेहद जरूरी है , जैसे कि गिरी , घी , पनीर और फिश। ये शरीर को नमी प्रदान करते हैं और कम उम्र में झुर्रियां पड़ने से रोकते हैं।

बिंज इटिंग को बाय - बाय : बीच - बीच में छुट - पुट खाना ही सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन है क्योंकि पूरा खाने खाते हुए तो लोग ध्यान रखते हैं कि क्या खाएं , क्या न खाएं लेकिन बीच - बीच में बिस्कुट , नमकीन , ड्राई - फ्रूट्स , कोल्ड ड्रिंक , चाय - काफी पीते रहना काफी कैलरी जमा कर देता है।

नॉन वेज : पोर्क या चिकन से परहेज करें। वाइट मीट या फिश का सकते हैं। डीप फ्राइ के बजाय भाप में बना या भुना मीट खाएं। पूरे अंडे के बजाय सफेद हिस्सा खाएं।

इस तरह से लीजिए डाइट
- दिन की शुरुआत कभी भी कॉफी या चाय के साथ न करें। कैफीन वाली चीजें बीपी व हार्ट रेट बढ़ाती हैं। इससे शरीर में तनाव महसूस होता है , जोकि पाचन तंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है। हम चाय या कॉफी पीकर नींद खुलने जैसा महसूस करते हैं , उसकी असली वजह हार्ट व ब्रिदिंग रेट का बढ़ना होता है। सुबह के वक्त बॉडी रिलैक्स होती है और हार्ट व ब्रिदिंग रेट सबसे कम होता है। इस रिलैक्स को बनाए रखने के लिए वास्तविक खाने की जरूरत होती है। चाय कॉफी से पिछले 9- 10 घंटे से भूखे सेल्स को जीरो न्यूट्रिशन मिलता है। इससे भूख मरती है और आप लंबे वक्त कर बिना महसूस किए भूखे रहते हैं। सूरज निकलने के साथ मेटाबॉलिज्म पीक पर होता है। ऐसे में इस वक्त सबसे ज्यादा खाने की जरूरत होती है। अगर आप कुछ ठोस नहीं खाना चाहते तो फल खा सकते हैं। इसके एक घंटे बाद फाइबर युक्त चीजें खाएं , जैसे रोटी - सब्जी , उपमा , इडली , पोहा आदि लेना चाहिए। एक बार सेल्स को न्यूट्रिशन मिल जाए तो आप चाय - कॉफी ले सकते हैं।

- हर दो घंटे में खाएं। इससे आप मोटे नहीं होंगे , बल्कि खाने की मात्रा कम होगी। ऐसे में एक वक्त में आप कम कैलरी लेंगे। ये कैलरी बेहतर तरीके से इस्तेमाल होंगी और शरीर में जमा नहीं होंगी। थोड़े - थोड़े अंतराल पर खाने से बॉडी को बेहतर महसूस होता है।

- ज्यादा ऐक्टिव हों तो ज्यादा खाएं और कम एक्टिव हों तो कम। अगर खुद को भूखे रखना सजा है तो ज्यादा खाना अपराध। बिना यह ध्यान दिए कि हमारे पेट को क्या जरूरत है , हम खाते जाते हैं। हम मोटे इसलिए होते हैं , क्योंकि हम सही वक्त पर खाने के बजाय गलत वक्त पर खाते हैं। उदाहरण के लिए लड्डू में काफी कैलरी होती है और अगर लड्डू खाने के साथ या रात में खाएं तो उन्हें कैलरी के रूप में शरीर में जमा होने से कोई नहीं रोक सकता। भरे पेट ( खाने के बाद ) और मेटाबॉलिक रेट कम होने के बाद ( सूर्यास्त के बाद ) शरीर पोषक न्यूट्रिएंट लेना बंद कर देता है। एक अच्छी और तनावरहित नींद भी फैट कम करने में मदद करती है। सही तरीका यह है कि रात में 6: 30 बजे तक पूरा खाना और 8: 30 बजे तक हल्का खाना खा लें। स्ट्रेस टाइम , बीमारी और ट्रैवल के वक्त ज्यादा कैलरी की जरूरत होती है।

- अपने वजन को बढ़ने से रोकने की सबसे बेहतर उम्र होती है 18 से 25 साल। इस दौरान वजन मेंटेन किया तो आगे आसानी से नहीं बढ़ता।

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

balance diet

A healthy diet will serve a good balance of each of the food groups listed. Of course, different individuals will need different amounts of food. Other factors such as age, body size, activity level, gender will also affect the amount of food you eat. Below is a guide to provide you with a general idea of how much from each group you should serve for a healthy diet.


Healthy Diet Food Guide
Vegetable and Fruits
5 to 12 servings per day Example:

•Carrots
•Broccoli
•Salads
•Bananas
•Apples
•Juices

Grain Products
5 to 10 servings per day Example:
•Breads
•Cereals
•Bagel
•Pastas
•Rice
•Buns

Dairy Products
2 to 4 servings per day Example:
•Milk
•Cheese
•Yogurt

Meat and Alternative Products
2 to 3 servings per day Example:
•Poultry
•Fish
•Eggs
•Beans
•Peanut butter
•Soy products (i.e.. Tofu)



Please note that meat is NOT a necessary part of a healthy diet. Contrary to what many say, you can get enough proteins from vegetables, beans and soy products.

The healthy diet food guide listed above should give you a good approach to eating healthy. You will find a wealth of information on healthy eating, cooking, and healthy dieting on our web site. As well, many delicious, healthy recipes. Here's a good place to start for cooking delicious, and healthy meals.

And remember, drink 6 to 8 glasses of water everyday. :)

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

बचें खांसी की फांसी से


खांसी यूं तो अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, पर यह शरीर के अंदर पनप रही या पनपने की कोशिश कर रही दूसरी बीमारियों का लक्षण जरूर है। वैसे, आम इलाजों से खांसी ठीक भी हो जाती है, पर कई बार यह किसी गंभीर बीमारी की ओर भी इशारा कर सकती है, इसलिए इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। एक्सपर्ट्स से बात करके खांसी के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं नरेश तनेजा :

क्या होती है खांसी
खांसी फेफड़ों, सांस की नलियों और गले में इन्फेक्शन या किसी कमी की वजह से होती है। नाक या मुंह की बीमारियों से खांसी नहीं होती। खांसी फेफड़ों या श्वसन तंत्र की किसी दूसरी बीमारी का लक्षण है, यानी खांसी इशारा है इस बात का कि शरीर के अंदर कोई बीमारी है। इसे शरीर का एक तरह का सुरक्षा मिकेनिज्म या उपाय भी कह सकते हैं। खांसी करके हमारा सिस्टम शरीर को बीमारियों के जीवाणुओं और कीटाणुओं से मुक्ति दिलाने की कोशिश करता है। इसमें हमें थोड़ी तकलीफ तो जरूर होती है क्योंकि मांसपेशियों व शरीर के बाकी अंगों पर जोर पड़ता है, लेकिन असल में उस समय शरीर अंदर ही अंदर अपनी रक्षा करने की कोशिश कर रहा होता है। हालांकि कई बार खांसी दूसरों तक बीमारी के कीटाणु या जीवाणु फैलाने का कारण भी बन जाती है।

कितनी तरह की होती है
सामान्य खांसी, ठस्के वाली खांसी (जिसका दौरा पड़ता है), कुकुर खांसी, काली खांसी और दमे से होने वाली खांसी। काली खांसी ऐसी खांसी को कहते हैं, जो लगातार आए, जिसमें सांस लेने का भी मौका न मिले और काफी देर बाद सांस आता हो। खांसी का ठस्का-सा लगता है। अमूमन यह बच्चों और किशोरों को होती है।

क्यों होती है खांसी
दमे से, गले में इन्फेक्शन से, टॉन्सिल्स से, फेरॅनजाइटिस से, ब्रोंकाइटिस से, फेफड़ों के इन्फेक्शन या दूसरी बीमारियों से, न्यूमोनिया से, दिल की बीमारियों की वजह से, बच्चों में पेट के कीड़ों के फेफड़ों में पहुंचने पर और एसिडिटी आदि से खांसी होती है।

हो सकती है यह दिक्कत
खांसी में बेचैनी, आंखों में खून या लाली आ जाना, सिरदर्द, कभी-कभी फेफड़ों में सूजन होना, मांसपेशियों पर जोर पड़ने से छाती में दर्द आदि हो सकता है।

क्या संकेत करती है
आपके श्वसन तंत्र या गले या फेफड़ों में कोई तकलीफ है, उसे नजरअंदाज न करें। लगातार तीन हफ्ते से ज्यादा खांसी रहे तो टीबी का संकेत हो सकती है, जिसकी पूरी जांच होनी चाहिए।

ये बातें याद रखें
कई बार एसिडिटी की वजह से भी खांसी होती है क्योंकि पेट में बना एसिड ऊपर चढ़कर सांस की नली में चला जाता है। ऐसे में एसिडिटी का इलाज जरूरी है, न कि खांसी का।
कई बार दिल का बायां हिस्सा बढ़ जाए या फेफड़ों की नसों का प्रेशर ज्यादा हो तो भी खांसी होने लगती है। इसे दिल का अस्थमा भी कहते हैं।
खांसी दमा का लक्षण भी हो सकती है। हालांकि दमा होने पर खांसी के वक्त सीटी बजना जरूरी नहीं है।
सिर्फ खांसी होना स्वाइन फ्लू का लक्षण भी हो सकता है।
तीन हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर टीबी की जांच करवा लेनी चाहिए। ऐसे में बलगम की तीन बार जांच करानी चाहिए।
दूसरों से दूर होकर खांसें। मुंह पर नैपकिन रख लें और खांसने के बाद उसे डस्टबिन में फेंक दें।
खाना खाते वक्त खांसी आए तो ध्यान से धीरे-धीरे खाएं, वरना खाने के टुकड़े सांस की नली में जा सकते हैं।
कुछ खाना फंस जाने से खांसी आने लगे तो पीड़ित की पीठ सहला दें। गुनगुना पानी पिला दें। आराम न मिले तो डॉक्टर को दिखाएं।
लेटते वक्त कोई भी खांसी बढ़ जाती है क्योंकि लेटने पर दिल पर प्रेशर बढ़ जाता है।

क्या ये सेफ हैं
खांसी की गोलियां मसलन विक्स, हॉल्स, स्ट्रेप्सिल्स आदि सेफ हैं। इनका कोई नुकसान नहीं है। इनसे आराम भी महसूस होता है। कफ सिरप भी लिए जा सकते हैं, पर कफ सिरप से शरीर और दिमाग में जरा सुस्ती आ जाती है।

एलोपैथी

एलोपैथी के अनुसार खांसी अलग-अलग तरह की होती है - नाक की खांसी, गले की खांसी, फेफड़े या दिल की खांसी। नाक की खांसी को नैसल एलर्जी या नैसल अस्थमा भी कहते हैं। इसमें खांसी के साथ छींकें व नाक से पानी बहता है।

दवा : सिट्रिजिन-10 एमजी ( Cetrizine ) या एलेग्रा-120 एमजी ( Allegra ) की एक गोली रोज।

गले की खांसी
गले की खांसी सूखी व बलगम वाली, दोनों हो सकती है। एक में गले में सिर्फ खराश होगी और खांसी नहीं आएगी। दूसरे में खराश के साथ खांसी आएगी।

खराश के साथ खांसी आए तो विटामिन-सी की गोली के साथ सिटजिन-10 एमजी या एलेग्रा-120 एमजी या तीन बार विकोरिल (Wikoryl) की गोली दी जा सकती है। अगर सिर्फ खराश हो तो पेंसिलिन ग्रुप की दवाएं दी जा सकती हैं।

फेफड़े या दिल की खांसी
खांसी में अगर बलगम के साथ सीटी भी बज रही है तो फेफड़ों की खांसी कही जाएगी। इसके लिए ब्रोंकोडिल या ब्रोंकोरेक्स सिरप के अलावा इनहेलर भी दिया जा सकता है।

अगर बिना बलगम और बिना सीटी के सूखी खांसी है तो यह हार्ट का अस्थमा हो सकता है। इसमें फौरन जांच करानी चाहिए। जांच के बाद ही दवाएं दी जा सकती हैं।

इसके अलावा, साइनस या एसिडिटी से होने वाली खांसी भी होती है। इनमें भी जांच के बाद लक्षणों के अनुसार दवा दी जाती है।

सिरप या चूसने की गोलियां

सिरप
शुगर के मरीज हिमालय ड्रग्स कंपनी का डायकफ सिरप या प्रोस्पैन सिरप ले सकते हैं। ये दोनों शुगर फ्री हैं। आम लोग भी इन्हें ले सकते हैं।

मुल्तानी फामेर्सी वालों का कूका सिरप, कासामृत सिरप, अमृत रस सिरप, सोममधु सिरप या हिमालय ड्रग्स का सेप्टिलीन सिरप या महर्षि फार्मा का कासनी सिरप लें। इसके अलावा, एलोपैथी में एलेक्स, कफरिल, ब्रोंकोरेक्स व ब्रोंकोडिल सिरप हैं।

चूसने की गोलियां
लवंगादि वटी, कासमर्दन वटी, कंठसुधारक वटी, कर्पूरादि वटी या खादिरादि वटी की एक या दो गोली दिन में चार बार चूसें।

लौंग, मुलहठी, स्वालीन, हॉल्स, विक्स, हनीटस या अदरक कैंडी चूसें।

होम्योपैथी में सिरप
रेकवैग का जस्टसिन (Justussine), एसबीएल का स्टोडल (Stodal) और बैक ऐंड कॉल कंपनी का कॉफीज (Cofeez) सीरप। इन्हें शुगर के मरीज भी ले सकते हैं क्योंकि ये मीठे में नहीं बनाये जाते।

खांसी में परहेज

ये चीजें न खाएं
मूंगफली के ऊपर से पानी, चटपटी व खट्टी चीजें, ठंडा पानी, दही, सॉस, सिरका, अचार, अरबी, भिंडी, राजमा, उड़द की दाल, लेसदार चीजें, खट्टे फल, केला, कोल्ड ड्रिंक, इमली, तली-भुनी चीजों को खाने के बाद पानी न पीएं। एकदम गर्म खाकर भी ठंडा पानी न पीएं। फ्रिज में रखी चीजें व चॉकलेट न खाएं। ठंडा दूध न लें।

इनको आजमाएं
दूध में सौंठ डालकर पीएं।
सौंठ डालकर गरम पानी पीएं।
गुनगुना पानी पीएं।
मुलहठी चूसें।
शहद, किशमिश, मुनक्का लें।
शुगर वाले एक-दो अंजीर पीसकर या रात को भिगो कर लें।
धुएं व धूल से बचाव रखें।

होम्योपैथी

सूखी खांसी : ब्रायोनिया-30 (Bryonia) या स्पॉन्जिया-30 (Spongia)
बलगमी, घरघराहट वाली खांसी : एन्टिम टार्ट-30 (Antim Tart) या आईपीकॉक-30 (Ipecac)
जुकाम बुखार के साथ खांसी : बेलाडोना-30 (Belladonna) या एकोनाइट-30 (Aconite) या हेपरसल्फर-30 (Hepar Sulphur)
काली खांसी : ड्रोसेरा-30 Drosera) या कूप्रम मैट-30 (Cuprum Mat)

बच्चों की खांसी : सूखी और शुरुआती खांसी है तो बेलाडोना-30 बेलाडोना-30 (Belladonna), बलगमी हो तो सेम्बूकस-30 (Sambucus) या फॉसफोरस-30 (Phosphorus)। चार से छह गोली दिन में तीन बार सात दिन तक दें।

रात को दिक्कत हो तो : ट्रायो ऑफ कफ मेडिसिन के नाम से तीन दवाएं आती हैं। जिन लोगों को खांसी की दिक्कत अक्सर होती हो, उन्हें इन्हें घर में रखना चाहिए। ये हैं : बेलाडोना-30 (Belladonna) व हेपर सल्फर-30 (Hepar Sulphur) व स्पॉन्जिया-30 (Spongia)। रात को इमरजेंसी में इनमें से किसी एक की चार-छह गोलियां एक-एक घंटे बाद थोडे़ गर्म पानी से ले सकते हैं। स्पॉन्जिया-30 (Spongia) दिल के मरीजों के लिए खांसी की स्पेशल दवा है।

नोट : ऊपर लिखी सभी दवाएं शुगर, ब्लड प्रेशर और दिल के मरीज भी ले सकते हैं। सभी की डोज एक जैसी होगी। दिन में चार बार पांच-पांच गोलियां लें।

आयुर्वेद
आयुर्वेद के अनुसार, जब कफ सूखकर फेफड़ों और श्वसन अंगों पर जम जाता है तो खांसी होती है। इसके लिए नीचे लिखे तरीकों में से कोई एक करें। इन दवाओं और नुस्खों को बीपी या दिल के मरीज भी अपना सकते हैं, पर डायबीटीज के मरीज सितोपलादि चूर्ण और कंठकारी अवलेह न लें क्योंकि उनमें मीठा होता है।

सूखी खांसी

हिमालय की सेप्टिलिन एक गोली सुबह-शाम सात दिन तक लें।
अमृर्ताण्व रस दो गोली सुबह व दो गोली शाम को पानी से लें।
सितोपलादि चूर्ण शहद में मिलाकर एक चम्मच चाटें। बच्चों को भी दे सकते हैं।
तालिसादि चूर्ण (करीब आधा चम्मच) पानी से दिन में तीन बार लें। बच्चों को भी दे सकते हैं।
जे एंड जे डिशेन कंपनी की डेंजाइन या डेस्मा की एक-एक गोली तीन बार पानी से लें या बिना पानी के चूसें। शुगर के मरीज और बच्चे भी ले सकते हैं।
चंदामृत रस की दो-दो गोली सुबह-शाम पानी से लें। शुगर के मरीज और बच्चे भी ले सकते हैं।
ज्यादा खांसी हो तो सेंधा नमक की छोटी-सी डली को आग पर रखकर गर्म करें और एक कटोरी पानी में डाल कर बुझा लें। उसी डली को फिर गर्म करें और पानी में डाल लें। ऐसा पांच बार करके यह पानी पिला दें। दिन में दो बार करें। बच्चों के लिए मुफीद है।
थोड़ी-सी फिटकरी को तवे पर भूनें। आधी मात्रा में अभ्रक भस्म मिलाकर चाटें।
हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर चाटें।
त्रिफला और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से भी फायदा होता है।
12 ग्राम हल्दी, 24 ग्राम गुड़ और तीन ग्राम पकाई हुई फिटकरी का चूर्ण मिलाकर गोलियां बना लें और दो-दो गोलियां दिन में दो-तीन बार चूसें।
तुलसी, काली मिर्च और अदरक की चाय पीएं।
दिन में दो बार गुनगुने दूध के गरारे करें।
दिन में दो-तीन बार शहद चाटें।
रात को गर्म चाय या दूध के साथ आधी चम्मच हल्दी की फंकी लें।
खराश में कंठकारी अवलेह आधा-आधा चम्मच दो बार पानी से या ऐसे ही लें।

बलगमी खांसी
हमदर्द का जोशीना गर्म पानी में डालकर लें।
महालक्ष्मी विलास रस की एक गोली दो बार पानी से लें।
कफांतक रस की एक गोली दिन में तीन बार कत्था-चूना लगे हुए पान के साथ लें।
काली मिर्च के चार दाने घी में भूनकर सुबह-दोपहर और शाम को लें।
काली मिर्च के चार दाने, एक चम्मच खसखस के दाने और चार दाने लौंग को गुड़ में मिलाकर गर्म करके तीन हिस्से कर लें। दिन में एक-एक कर तीन बार लें।
पीपली, काली मिर्च, सौंठ और मुलहठी का चूर्ण बनाकर रख लें। चौथाई चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार चाट लें।
चौथाई कटोरी पानी में पान का पत्ता और थोड़ी-सी अजवायन को डालकर उबाल लें। आधा रहने पर पत्ता फेंक दें। पानी में चुटकी भर काला नमक व शहद मिलाकर रख लें। इसी में से दिन में दो-तीन बार पिलाएं। बच्चों के लिए बेहद फायदेमंद है।
विक्स, नीलगिरी का तेल, यूकेलिप्टस का तेल, मेंथॉल ऑयल में से कोई भी गर्म पानी में डालकर दिन में दो-तीन बार स्टीम लें। सादे गर्म पानी की भाप भी ले सकते हैं।

जुकाम-बुखार के साथ खांसी
महालक्ष्मी विलास रस या त्रिभुवन कीर्ति रस की एक-एक गोली दो बार लें।
संजीवनी वटी एक गोली दिन में दो बार लें।
नागवल्लभ रस की एक गोली दिन में तीन बार पान के पत्ते में लपेटकर या आधा चम्मच अदरक के रस के साथ लें।
कफकेतु रस की एक गोली को आधा चम्मच अदरक के रस से दिन में दो बार लें।
लसूड़े को बीज समेत बिना घी के थोड़ा-सा भूनकर उसमें आधा चम्मच सौंठ, दो लौंग और चौथाई चम्मच दालचीनी मिलाकर पानी में उबालकर चीनी डालकर शर्बत बना लें। इसे दिन में दो-तीन बार लें।
एक बताशे में एक काली मिर्च डालकर चबा लें। इस तरह दिन में एक बार तीन-चार बताशे खाएं।

घरघराहट या खड़खड़ वाली खांसी
इस खांसी में पसलियां चलती हैं, जिससे छाती में से आवाज-सी निकलती है।
तालिसादि चूर्ण तीन ग्राम पानी से दिन में तीन बार लें।
वासावलेह आधा चम्मच गर्म पानी से दिन में दो बार लें।
एक्सपर्ट से पूछकर श्रृंग भस्म और सितोपलादि चूर्ण का मिक्सचर लें।
लक्ष्मी विलास की एक-एक गोली सुबह-शाम पानी से लें।
चिरौंजी को पीसकर थोड़े से घी में छौंक लें और दूध मिलाकर उबालें। इसमें थोड़ा इलायची पाउडर और शहद मिलाकर पी लें। शुगर के मरीज बिना शहद के लें।
रात को सरसों का तेल गर्म करके छाती पर मलने के बाद रुई या गर्म कपड़ा छाती पर बांध दें।
छाती पर गर्म पानी की बोतल भी रख सकते हैं।
ऐलोविरा का गूदा निकालकर उसे भूनकर पांच काली मिर्च मिलाकर गोली बना लें। बच्चों को दो-दो गोली सुबह-शाम दूध से दें। रात में इमरजेंसी होने पर भाप लें और जुशांदे को गर्म पानी में उबालकर लें।

नोट : सभी दवाएं किसी वैद्य की देखरेख में लें।

चंद सवाल-जवाब

खांसी व अस्थमा में क्या फर्क है ?
अस्थमा होने पर छाती से सीटी और शां शां की आवाज आती मालूम पड़ती है और सांस फूल जाता है, जबकि साधारण खांसी गले में खराबी की वजह से भी हो जाती है।

खांसी न्यूमोनिया से हुई है या वायरल से हुई है, कैसे पहचानें?
वायरस से होने वाली खांसी आम होती है, पर न्यूमोनिया से होने वाली खांसी में एक्सरे कराने पर न्यूमोनिया का पैच दिखाई देता है। ब्लड टेस्ट कराने पर भी न्यूमोनिया के लक्षण सामने आ जाते हैं।

पफ व नेबुलाइजर की जरूरत कब पड़ती है?
अगर सांस लेने पर सीटी की आवाज आए और आप घर पर हों तो नेबुलाइजर की मदद लें। अगर घर से बाहर हों तो जेब में रखने वाला पफ या इनहेलर लें। जरूरत के अनुसार यह दिन में दो बार लिया जा सकता है या डॉक्टर की सलाह के अनुसार इसका यूज करें।

बलगम में खून आए तो?
खांसी से खून आए तो घबराना नहीं चाहिए। कई बार जोर से खांसने पर भी खून आ जाता है। खून आने पर देखना चाहिए कि उसका रंग लाल है या काला। ऐसे में खून की जांच और छाती का एक्सरे व सीटी स्कैन करवाना चाहिए। बार-बार खून आए तो टेस्ट जरूर करा लेने चाहिए। टीबी और लंग कैंसर की वजह से भी खून आ सकता है। टीबी की जांच के लिए ईएसआर, बैक्टीरिया के लिए टीएलसी और वायरस के लिए डीएलसी जांच की जाती है।

डॉक्टर के पास कब जाएं?
अपने आप डॉक्टर न बनें और न ही घरेलू इलाज के भरोसे रहें। डॉक्टर को दिखाना ही बेहतर है।

कितने दिनों बाद समझें कि खांसी खतरनाक है?
खांसी को एक हफ्ते से ज्यादा हो जाए तो ब्लड की जांच कराएं।