गुरुवार, 5 जनवरी 2012

फिटनेस फंडा

आप घर में ही एक्सर्साइज करके खुद को फिट रख सकते हैं।




जिम नहीं तो घर

दरअसल , अक्सर रेग्युलर एक्सर्साइज के लिए जिम जाने वाले लोग सर्दी - गर्मी और बरसात जैसी वजह से कई - कई दिनों तक एक्सर्साइज करने नहीं जाते। इसके बाद होता यह है कि उनका मेटाबॉलिक रेट कम होता जाता है। इससे उन्हें आलस आने लगता है और उनकी बॉडी पर दोबारा से फैट चढ़ने लगता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर आप जिम नहीं जा पा रहे हैं , तो घर पर ही एक्सर्साइज कर सकते हैं। फिटनेस एक्सपर्ट लीना मोंगरे कहती हैं , ' अगर वर्कआउट के लिए बाहर निकलने का मन न हो , तो परेशान होने वाली कोई बात नहीं। आप घर बैठकर ही एक्सर्साइज कर सकती हैं। इसके लिए बस चाहिए अच्छा म्यूजिक और थोड़ा सा स्पेस। '


बिना मशीन के वार्म अप


आपके पास घर में कॉर्डियो मशीन नहीं है , तो इसका मतलब यह नहीं कि आप वॉर्म आप नहीं कर सकते। इसमें टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए सबसे पहले अपने जूते निकालिए और खड़े - खड़े जॉगिंग शुरू कर दीजिए। एक ही जगह पर तकरीबन 10 मिनट तक जॉगिंग करें। इससे आपका बखूबी वॉर्म अप हो जाएगा। इसके बाद मैट या टॉवल बिछाएं और तैयार हो जाएं सूर्य नमस्कार के लिए। आपको बता दें कि सूर्य नमस्कार में 12 पॉश्चर होते हैं और यह करीब एक मिनट में एक बार पूरा होता है।



सूर्य नमस्कार

सीधे खड़े हो जाएं। पैरों को फैला दें। हाथ सीधे ऊपर की तरफ स्ट्रेच करें। अब बाहर सांस छोड़े और धीरे - धीरे नीचे झुकें। हाथों से जमीन को छूएं। अब वापस सीधे खड़े हो जाएं। अब दोनों हाथों की हथेलियों को जमीन पर टिका दें। बाएं पैर को पीछे ले जाएं। अब आपकी बॉडी एक आर्च फॉर्म करेगी यानी कि एक पहाड़ के शेप में होगी। अब आप बॉडी को जमीन पर छोड़ दें। आपके पैर , थाई , चेस्ट , माथा और हाथ सब जमीन को टच होने चाहिए। अब फिर प्रेशर डालकर बॉडी को उठाएं और पहले वाली पोजिशन में ले आएं। अब बाएं पैर को वापस लाएं। उसके बाद दाएं पैर को भी वापस अपनी पोजिशन में ले आएं। स्टैडिंग पोजिशन में हो जाएं। इसके बाद यह क्रम फिर से दोहराएं।



सर्किट

जब आप सर्किट कर रहे हों , तो यह ध्यान रखें कि आप इसे लगातर 25 बार करें। फिर दो बार और रिपीट करें।



स्क्वाट्स

अपने पैरों और कंधों को एक ही लेवल पर रखें। हाथ आगे निकालें और बैलेंस करते हुए ऐसे झुकें जैसे चेयर पर बैठे हों। अपनी बैक स्ट्रेट रखें और घुटनों को पैरों के लेवल से आगे न झुकने दें। अब वापस ऊपर जाकर स्ट्रेट पॉजिशन में खड़े हो जाएं। एक्सर्साइज को एक बार फिर से रिपीट कर लें।



लंजेस

सीधे खड़े हो जाएं। अब अपना बायां पैर वापस लाकर 90 डिग्री पर झुकें। आपका पैर जमीन पर पूरी तरह फ्लैट होना चाहिए। अपनी बैक स्ट्रेट रखें। अब थोड़ी देर रुक के वापस स्टार्ट पोजिशन पर आएं। अब दूसरे पैर से करें। दोनों पैरों से 25-25 बार करें।



पुश अप्स

अपने आप को जमीन पर फ्लैट पोजिशन में करें और अपनी टोज पर और हाथों पर बैलेंस करें। अगर बॉडी में ताकत कम है , तो घुटनों और हाथों पर बैलेंस करें। हाथों को दूर - दूर रखें। आपकी पूरी बॉडी एक स्ट्रेट लाइन में होनी चाहिए। अब बैलेंस करते हुए ऊपर आएं , जब तक कि आपके हाथ 90 डिग्री ऐंगल पर नहीं आते। फिर नीचे जाएं। इसे दो से तीन बार रिपीट करें।



क्रंचेज

अपनी बैक पर फ्लैट लेट जाएं। अपने पैर थोड़े बैंड कर लें और ज्यादा दूर न रखें। हाथों को सपोर्ट के लिए सर के पीछे रखें। आप ऊपर आकर सर को पैर तक लाने की कोशिश करें। इस एक्सर्साइज को फिर से रिपीट करें।



कूल डाउन

जब आप वर्कआउट कर चुके हों , तो आप लोअर बैक स्ट्रेचेज करें। अपनी पीठ पर फ्लैट लेट जाएं और बाएं पैर को चेस्ट तक लाएं। अब बाएं पैर को वापस फ्लैट पोजिशन पर ले जाकर दाएं पैर को चेस्ट तक लाएं। अब दोनों पैरों को साथ में चेस्ट तक लाएं और रिलैक्स करें।



सावधानी

अगर आपको बैक या जॉइंट प्रॉब्लम है , तो कोई भी एक्सर्साइज करने से पहले अपने फिटनेस एक्सपर्ट से कंसल्ट करें।
ये करें एक्सर्साइज


- प्रेशर में एक्सर्साइज करने की बजाय आपको ऐसी एक्सर्साइज करनी चाहिए , जो आपको खुशी दें। जैसे स्विमिंग , दोस्तों के साथ ब्रिस्क वॉकिंग या बैडमिंटन वगैरह।

- आप चाहें , तो खुद को तरोताजा रखने के लिए योगासन भी कर सकते हैं।

- जहां तक जिम ट्रेनिंग की बात है , वहां भी लाइट वेट एक्सर्साइज ही करनी चाहिए। ट्रेड मील पर दौड़ने की बजाय चलना ज्यादा बेहतर रहता है।

- आप अपने एक्सर्साइज के वक्त को कम भी कर सकते हैं। 30 से 45 मिनट की एक्सर्साइज आपकी सेहत के लिए बेहतर रहेगी।

एक्सर्साइज करते वक्त ढीले और आरामदायक कपडे़ ही पहनें।



एक्सर्साइज शेड्यूल

- हफ्ते में दो बार योगासन

- हफ्ते में एक बार कोई भी खेल

- हफ्ते में दो बार जिम या वॉक

- हफ्ते में दो बार स्विमिंग



डायट का रखें ख्याल

- एक्सर्साइज के साथ - साथ सही डायट लेना बेहद जरूरी है।

- बैलेंस डायट को लंबे समय तक कंटिन्यू किया जा सकता है , लेकिन बॉडी को कंप्लीट न्यूट्रीशन मिलना बेहद जरूरी है।

- कम तेल का घर का बना खाना हमेशा बेहतर ऑप्शन होता है।

- रोजाना कम से कम एक फल जरूर खाएं।

- चावल का सेवन कम से कम करें।

- घी खाना पूरी तरह बंद न करें , क्योंकि यह रोगों से लड़ता है। लेकिन इसे सही मात्रा में इस्तेमाल करें ।

- हफ्ते में कम से कम पाँच बार पत्तेदार सब्जियों का सेवन जरूर करें।

- अपनी रोजाना डायट में सलाद , छाछ और दही को शामिल करें।

- प्रतिदिन दूध जरूर पीएं।

- पापड़ , अचार , मीठा , जंक फूड , नशीली व तली हुई चीजें खाने से बचें।





मंगलवार, 21 जून 2011

नजर न लग जाए

आई स्ट्रेन यानी आंखों का तनाव एक आम समस्या है। कंप्यूटर या लैपटॉप पर लगातार काम करने और ज्यादा टीवी देखने के अलावा ऐसे कई और काम हैं, जिनके कारण यह समस्या आ सकती है। आई स्ट्रेन ज्यादा गंभीर हो जाए तो इसकी वजह से कई दूसरी समस्याएं भी हमला कर देती हैं। आंखों के इस तनाव से बचने के तरीके एक्सपर्ट्स से बात करके बता रहे हैं प्रभात गौड़ :




स्ट्रेन क्या होता है



आई स्ट्रेन दरअसल आंखों को कंट्रोल करने वाली मसल्स का स्ट्रेन होता है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि अगर आंख को एक ही स्थिति में लंबे वक्त तक रखा जाए तो आंख की मांसपेशियों में तनाव आ जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि किसी एक ही चीज पर लंबे वक्त तक आंखों को फोकस किया जाए या किसी एक ही दूरी पर मौजूद चीज पर आंखों को देर तक स्थिर रखा जाए तो भी आंख में तनाव आ जाता है। नजदीक की चीजों पर फोकस करने से आंख में स्ट्रेन आने की संभावना ज्यादा होती है। दूर की चीजों पर फोकस किया जाए तो स्ट्रेन उतनी जल्दी नहीं होता। जल्दी-जल्दी दूरी बदलने पर भी आंखों में स्ट्रेन बढ़ जाता है।



इनसे हो सकता है स्ट्रेन



जिन ऐक्टिविटीज में लंबे समय तक एक ही चीज पर आंखों को फोकस करना होता है, उनमें स्ट्रेन हो सकता है। ये गतिविधियां हैं :



- कंप्यूटर का इस्तेमाल

- टीवी या मोबाइल की स्क्रीन लगातार देखना

- पढ़ना

- ड्राइविंग



इसके अलावा इन वजहों से भी आंखों में स्ट्रेन हो सकता है।



- कम रोशनी

- किसी चीज को देखने का गलत एंगल

- ज्यादा चमकदार चीजों को देखना

- स्क्रीन के कंट्रास्ट लेवल का कम होना

- सही नंबर का चश्मा न पहनना या निगाह कमजोर होने पर भी कम नंबर का चश्मा लगाना

- स्ट्रेस, थकान

- बैठने का गलत तरीका

- अल्कोहल या ड्रग्स का इस्तेमाल



क्या हैं लक्षण



- आंखों में दर्द या चिड़चिड़ापन

- सिर में दर्द या माइग्रेन

- नजर कमजोर होते जाना और चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव

- पास से दूर नजर फोकस करने में दिक्कत होना

- कभी-कभी एक की दो चीजें नजर आना

- आंखों में सूखापन



रिस्क



आंखों में तनाव का कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है, लेकिन इसकी वजह से आपको जल्दी थकान हो सकती है और यह आपकी ध्यान से काम करने की क्षमता को भी कम कर सकती है। अगर आई स्ट्रेन दूर करने के तरीके अपना लिए जाएं तो भी कई बार आंखों के तनाव को दूर होने में कई दिनों का वक्त लग सकता है।



बचाव के तरीके



1. ऑफिस में खेलें 20-20



- अगर कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं या टीवी देख रहे हैं तो काम के साथ-साथ 20-20 भी खेलते रहें।



- इसके लिए 20 मिनट तक लगातार स्क्रीन पर फोकस करने के बाद 20 सेकंड के लिए नजर वहां से हटाएं और अपने से 20 फुट की दूरी पर स्थित किसी चीज पर फोकस करें। इसके अलावा टी20 की तरह स्ट्रैटजिक टाइम आउट भी लेते रहें यानी काम के दौरान हर घंटे आंखों को पांच मिनट के लिए आराम दें। हर दो घंटे के बाद सीट से उठ जाएं और कुछ चलने-फिरने का काम निबटा लें। मसलन फोन पर ऑर्डर देने की बजाय चाय लेने खुद कैंटीन चले जाएं, पानी की बोतल खुद भर लाएं आदि। ऐसा करने से आंखों को आराम मिलेगा। टीवी देख रहे हैं तो भी बीच-बीच में इसी तरह छोटे-छोटे ब्रेक लेते रहें।



- अगर आंखें पास की चीजों पर फोकस करती हैं तो उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है। ऐसे में बीच बीच में दूर की चीजों पर नजर फोकस करना जरूरी है।



- ड्राइविंग करते वक्त भी नजर लगातार सामने रहती है। ऐसे में बीच-बीच में नजर स्पीडोमीटर पर डालते रहना चाहिए।



2. ज्यादा चमक नहीं अच्छी



- नॉन-रिफ्लेक्टिव इंटरफेस का इस्तेमाल ज्यादा-से-ज्यादा करें। नॉन-रिफ्लेक्टिव इंटरफेस का मतलब है ऐसी सतह, जिससे कम-से-कम चमक आंखों पर पड़ती हो।



- अगर कुछ आप पेपर या मैगजीन से पढ़ सकते हैं तो उसे ऑनलाइन पढ़ने की कोशिश न करें। पेपर पर पढ़ने से स्क्रीन पर पढ़ने के मुकाबले आंखों की मसल्स को कम मेहनत करनी पड़ती है और उन पर चमक नहीं पड़ती।



- मोबाइल पर हालांकि ज्यादा देर नजर टिकाने की कम जरूरत पड़ती है, लेकिन आजकल तमाम फीचर्स से लैस मोबाइल फोंस आ रहे हैं, जिनमें अकसर लोग लंबे समय तक नजरें जमाए रहते हैं। ऐसे में मोबाइल की स्क्रीन के रिफ्लेक्शन को कम करके रखें, जिससे आंखों पर कम चमक पड़े।



3. कंप्यूटर हो ऐसा



- कंप्यूटर फ्लैट स्क्रीन वाले हों तो बेहतर है। उनसे आंखों को कम नुकसान पहुंचता है।



- कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हो सके तो कंप्यूटर स्क्रीन पर ऐंटि- ग्लेयर फिल्टर का इस्तेमाल करें। इसी तरह ऐंटि- ग्लेयर चश्मे का यूज भी किया जा सकता है, लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि आजकल कंप्यूटर स्क्रीन में ही ब्राइटनेस और कंट्रास्ट को ऐडजस्ट करने की सुविधा होती है। इसे अपनी आंखों और आसपास की रोशनी के हिसाब से ऐडजस्ट कर लें, तो आंखों के तनाव को खुद ही कम किया जा सकता है।



- कंप्यूटर की स्क्रीन उस तरफ करके न रखें, जहां से रोशनी का रिफ्लेक्शन स्क्रीन पर पड़ता हो।



- मॉनिटर के ऊपर जमी धूल को रोजाना साफ करें।



- कंप्यूटर पर काम करते वक्त रोशनी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।



- कंप्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन आपकी आंखों से भरपूर दूरी पर होनी चाहिए। यह दूरी 20 इंच के करीब रख सकते हैं।



- फ्लिकर को कम करने के लिए स्क्रीन की रिफ्रेश रेट को 70 हर्ट्ज के आसपास रखना चाहिए। इसे सेट करने के लिए कंप्यूटर स्क्रीन पर राइट क्लिक करें। properties में जाएं। फिर यह रूट फॉलो करें settings-advance-monitor यहां स्क्रीन रिफ्रेश रेट को सेट कर सकते हैं।



4. एलसीडी बेहतर



- जिस जगह टीवी देख रहे हैं, वहां रोशनी की भरपूर व्यवस्था होनी चाहिए।



- टीवी देखते वक्त सुनिश्चित करें कि रोशनी का स्त्रोत आपकी साइड नहीं, टीवी की साइड में हो। मतलब जब आप टीवी देखें तो प्रकाश भी उसी दिशा से आए जिस दिशा से टीवी की चमक आ रही है।



- सामान्य टीवी में फ्लिकरिंग रेट बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में टीवी देखने के लिए आंखों की पुतली को बार-बार छोटा-बड़ा करना पड़ता है और आंखों की मांसपेशियां जल्दी थकती हैं। ऐसे में एलसीडी का ऑप्शन बेहतर है। इसमें फ्लिकर रेट कम होता है और आंखों को आराम रहता है।



- लेटकर टीवी कभी न देखें। इससे आंखों का एंगल अलग-अलग हो जाता है, जिसकी वजह से दिक्कत हो सकती है।



5. नजर पर रहे नजर



- स्क्रीन पर लगातार काम करने वाले लोगों को अपनी नजर रेग्युलर चेक कराते रहना चाहिए।



- जिन लोगों को बेहद कम नंबर की जरूरत है, उनकी आंखों की मसल्स उस नजर की कमी की भरपाई करती हैं, जिससे उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है और थकान होती है। इसलिए चश्मे का अगर कम-से-कम नंबर भी है तो उसे जरूर लगाएं। 0.25 नंबर है, तो भी उसे जरूर लगाना चाहिए।



- अगर पहले से चश्मे का इस्तेमाल करते हैं तो भी यह चेक कराते रहें कि चश्मे का नंबर बढ़ तो नहीं गया है। गलत नंबर का चश्मा लगाना सिर और आंखों में दर्द होने की वजह हो सकता है।



- साल में एक बार आंखों का जनरल चेकअप जरूर करा लें।



6. एक्सरसाइज काम की



कंप्यूटर / टीवी देखने से आज के वक्त में हम पूरी तरह बच तो नहीं सकते, लेकिन उससे होने वाले नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं। ये टिप्स और एक्सरसाइज आपके काम की हो सकती हैं।



- दोनों हथेलियों को आपस में तकरीबन 30 सेकंड तक रगड़ें। हथेलियां हल्की गर्म हो जाएंगी। इनसे दोनों आंखों को बंद कर लें। आंखें इस तरह बंद करनी है, जिससे रोशनी आंखों तक न पहुंचे। इस स्थिति में दो मिनट रहें। इससे थकी आंखों को काफी आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को दिन में दो-तीन बार कर सकते हैं।



- हाथ के अंगूठे को आंखों से करीब 15 सेमी दूर रखें और अंगूठे के टिप पर फोकस करें। गहरी लंबी सांस लें और जाने दें। इसके बाद करीब चार मीटर की दूरी पर रखी किसी चीज पर आंखों को फोकस करें। फिर लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ दें। इस प्रॉसेस को तीन-चार बार दोहरा सकते हैं। दिन में दो-तीन बार ऐसा कर सकते हैं।



- पानी की दो कटोरियां ले लें। एक में गर्म पानी लें और दूसरी में बर्फीला ठंडा। दोनों कटोरियों में एक एक कपड़ा डालकर रखें। आंखों को बंद कर लें। पहले गर्म पानी में भिगोया हुआ कपड़ा आंखों पर आधे मिनट के लिए रखें। इसके बाद ठंडे पानी में भिगोया कपड़ा आंखों पर रखें। एक के बाद एक ऐसा करते जाएं। दो से तीन मिनट ऐसा कर लें। इसके बाद उंगलियों से आंखों की हल्की मसाज कर लें।



- आंखों को क्लॉकवाइज और ऐंटि-क्लॉजवाइज दिशा में घुमाएं। क्लॉकवाइज एक बड़ा जीरो बनाएं। ऐसा ही एक जीरो ऐंटि-क्लॉकवाइज बनाएं। 10-10 बार दोनों तरफ से कर लें। दिन में दो से तीन बार तक कर सकते हैं।



- काम के बीच-बीच में आंखें बंदकर बैठें। 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें। दरअसल, खुली आंखें ऊर्जा को बाहर फेंक रही होती हैं, जबकि बंद आंखें ऊर्जा को हासिल करती हैं। आंखें बंद करने से न सिर्फ आंखों को, बल्कि मन को भी सुकून मिलता है।



- मुंह में ठंडा पानी भरें और आंखों पर पानी के छपाके मारें। ध्यान रहे, छपाके सीधे आंख पर जाकर न लगें। इससे चोट लगने का खतरा रहता है। ऐसा दिन में तीन से चार बार कर लें। जब भी आंखें भारी महसूस हों, काम से ब्रेक लें और यह क्रिया कर लें।



- गुलाबजल से रुई को भिगो लें और उसे पांच मिनट तक आंखों पर रखें। इससे ठंडक मिलेगी और तनाव कम होगा।



- रोज सुबह हरी घास पर (ओस वाली) पर नंगे पैर आधा घंटा टहलें। आंखों की सारी गर्मी निकल जाएगी।



- आंखों की भवों को पकड़कर दबाते हुए आंख के चारों तरफ हल्की मालिश करें। इससे आंख के अंदर खून के बहाव में बढ़ोतरी होगी और आंखों का तनाव चला जाएगा।



- सीधे किसी भी आसन में बैठ जाएं। सीधा हाथ सामने रखें। अंगूठा आंखों के सामने रहे। इसे देखते रहें। अब अंगूठे को सीधे हाथ की तरफ ले जाएं। नजर अंगूठे के साथ-साथ चलती जाएगी। अंगूठा वापस बीच में ले आएं। इस क्रिया के दौरान गर्दन नहीं घूमनी चाहिए। अब यही क्रिया लेफ्ट हैंड से दोहराएं। तीन-चार राउंड कर लेने चाहिए। इस दौरान नजर अपलक रहे तो अच्छा है।



- सीधा हाथ सामने रखें। अंगूठा आंखों की तरफ लाएं। जितना देख सकें, देखें। इसमें भी नजर अपलक ही रहेगी।



- आंखों को जल्दी-जल्दी खोलें और बंद करें। ऐसा 15 से 20 बार कर सकते हैं।



- कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम आंखों के लिए बेहद अच्छे माने जाते हैं।



- इसके अलावा जलनेति और सूत्रनेति भी फायदेमंद हैं। इन क्रियाओं को किसी योग्य गुरु से सीखकर ही करना चाहिए।



- हरी सब्जियों का सेवन करें। नींद पूरी लें।



8. सामान्य दवाएं



ऐलोपैथी



- कुछ सामान्य दवाएं हैं, जिन्हें आंखों की थकान दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी दवाओं में रिफ्रेश टियर्स (Refresh Tears ) , जेंटील (Genteal ) और टियर प्लस (Tear Plus ) के नाम लिए जा सकते हैं। इन दवाओं की एक-एक बूंद को रात के वक्त आंखों में डाल सकते हैं या जब भी आंखों में थकान महसूस तो भी इसे यूज कर सकते हैं।



होम्योपैथी



होम्योपैथी में आई स्ट्रेन के लिए कुछ खास दवाएं दी जाती हैं। नीचे दी दवाओं को 30 नंबर की गोली और 30 नंबर की पावर के साथ ले सकते हैं।



- अगर आंखों में ड्राईनेस है और कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक देखने से आंखों में तनाव होता है तो फाइसोस्टिग्मा ( (Physostigma ) या रूटा (Ruta ) दवाएं दी जाती हैं।



- अगर आंखों में लाल होने, सूजने या पानी आने की समस्या है तो बेलाडोना (Belladonna) दी जाती है।



- अगर उम्र 40 से ऊपर है और आंखों में तनाव महसूस होता है तो अर्जेंटम नाइट्रिकम (Natrum Mur ) ली जा सकती है।



- आंखों में स्ट्रेन के साथ अगर सिर दर्द और उल्टी जैसी भी महसूस होती है तो नैट्रम म्यूर (Natrum Mur ) दी जा सकती है। ऐसे लोगों को नमक खाने की ज्यादा इच्छा होती है।



- इसके अलावा कुछ आंखों में डालने की दवाएं भी हैं। इन दवाओं को दिन में तीन बार एक-एक बूंद डाल सकता है। ये दवाएं हैं: यूफ्रेशिया (Euphrasia ) और सिनेरेरिया (Cinneraria ) की)। पहली दवा को किसी भी उम्र का शख्स डाल सकता है और दूसरी दवा 40 से ऊपर के लोगों को डालनी चाहिए।



जानिए प्रमुख बीमारियों के पथ्य-अपथ्य

जानिए प्रमुख बीमारियों के पथ्य-अपथ्य


प्रकाशित : 05/25/2008आरोग्य

बीमार होना कोई बड़ी बात नहीं है। जब भी खान-पान, रहन-सहन में थोड़ी-सी भी प्रतिकूलता हो जाती है, तभी इंसान बीमार पड़ जाता है। बीमार पड़ने पर चिकित्सक की सलाह पर रोगी औषधि का सेवन करता है, किन्तु पथ्य-अपथ्य की जानकारी न होने के कारण वह परहेज नहीं करता। परिणामस्वरूप रोगी पूरी तरह �� ीक होने में महीनों का समय ले लेता है।



�� ीक होने के बाद भी अगर रोगी पथ्य-अपथ्य पर ध्यान नहीं देता है, तो वह पुन बीमार हो सकता है। क्या खाया जाए और क्या न खाया जाए ताकि स्वस्थ रहें, इस विषय पर यहाँ प्रमुख जानकारियाँ दी जा रही हैं। रोगानुसार पथ्य-अपथ्य इस प्रकार हैं-



मोटापे में :- जौ, चना, गेहूँ, मूंग, मसूर, शहद, मट्�� ा, पत्तेदार सब्जियाँ, हरी तरकारियाँ, ताजे मी�� े फल एवं व्यायाम मोटापे के रोगियों के लिए पथ्य हैं, किन्तु चावल, दूध, मि�� ाई, माँस, शक्कर, दाल, उड़द, घी, शराब तथा दिन में सोना अपथ्य माना जाता है।



अजीर्ण-मन्दाग्नि में :- संतरा, नींबू, शहद, आँवला, मूंग की दाल का पानी, पुराना चावल, बथुआ, अनार, मूली, मक्खन, लहसुन, मट्�� ा, सरसों का तेल, पे�� ा, केला, हींग, अदरक, परवल, अजवाइन, करेला, मेथी, जीरा तथा धनिया इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए पथ्य है जबकि जुलाब लेना, उड़द की दाल, आलू, दूध, खोआ, माँस तथा मछली अपथ्य हैं।



गर्भधारण के बाद :- गेहूँ, चावल, जौ, मूंग, मक्खन, दूध, शहद, चीनी, आंवला, केला, आम, मी�� े फल, अंगूर, मुनक्का, ताज़ी हरी सब्जी, अंजीर, किशमिश गर्भवती महिला के लिए पथ्य माना जाता है, जबकि उड़द, मिर्च, खटाई, गरिष्�� भोजन, उपवास करना, वादी तथा कब्ज करने वाले पदार्थ तथा दिन में सोना आदि अपथ्य माना जाता है।



हृदय रोग में :- पुराने चावल, मूंग का पानी, परवल, लौकी, तुरई, केला, कच्चा आम, हरी मिर्च, अनार, लहसुन, मट्�� ा, अदरक, शहद, मुनक्का, माँस का रसा, अंगूर, शुद्ध जल आदि हृदय रोग से पीड़ित रोगी के लिए पथ्य हैं, जबकि खट्टे एवं गर्म पदार्थ, साग, शराब, भांग, गांजा आदि अपथ्य माने जाते हैं।



पीलिया (जॉण्डिस) में :- आम, कुंदरू, परवल, केला, पे�� ा, चौलाई, मट्�� ा, लहसुन, प्याज, लौकी, तुरई, पपीता की सब्जी पीलिया रोगी के लिए पथ्य हैं, जबकि उड़द, हींग, सरसों के पत्तों का साग, दूध, हल्दी, खटाई, मि�� ाई एवं अधिक नमक अपथ्य हैं।



अतिसार में :- पुराना चावल, मसूर की दाल, अरहर की दाल का पानी, बकरी का दूध, गाय का दूध, मट्�� ा, केले की सब्जी, शहद, जामुन, लसोड़ा, अदरक, बेल, चौलाई का साग अतिसार के रोगियों के लिए पथ्य है। गेहूँ, उड़द, जौ, बथुआ, सेम, मकोय, आलू, आम, सहिजन, गुड़ मुनक्का, लहसुन, ककड़ी, खीरा, खटाई, कद्दू तथा लौकी अपथ्य हैं।



दमा में :- गेहूँ, जौ, पुराना चावल, बकरी का दूध, मक्खन, उड़द, शहद, बथुआ, चौलाई, मूली, पोई का साग, परवल,लहसुन नींबू, कुंदरू, मुनक्का दमा के रोगी के लिए पथ्य हैं। तेल, वनस्पति घी, कड़ाही के तले व्यंजन, दही, मट्�� ा, मक्का, बैंगन, अरबी, भिण्डी आदि अपथ्य माने जाते हैं।



प्रमेह में :- जौ, गेहूँ, परवल, गूलर, लहसुन, जामुन, खजूर, चावल, ताजा मट्�� ा, तरबूज पथ्य माना जाता है। उड़द, लोबिया, सिरका, खटाई, गुड़, तेल, मिर्च मसाला कब्जकारक पदार्थों को अपथ्य माना जाता है।



उल्टी (वमन) में :- धनिया, पुदीना, नींबू, शहद, आंवला, आम, बेर, आलू बुखारा, मुनक्का, पका कैथ, अनार, सौंफ, अजवायन, मिश्री, संतरा, मौसम्मी पथ्य माना जाता है, जबकि तुरई, कुंदरू, सरसों, उष्ण तथा चिकने पदार्थों को अपथ्य माना जाता है।



खाँसी में : नींबू, परबल, लहसुन, मुनक्का, शहद, बथुआ, घी, मकोय का साग, बकरी का दूध पथ्य माना जाता है, जबकि कब्जकारक पदार्थ, सरसों का तेल, लौकी, पोई का साग, आलू, खटाई एवं मछली आदि को अपथ्य माना जाता है।



पेट की कीड़ों में : बथुआ, लहसुन, सरसों का साग, केले की सब्जी, नीम की कोमल पत्तियों का साग, हल्का अन्न, जौ, पुराना चावल, मक्खन, पे�� ा, केला, परवल, मिश्री, जौ, घी, गाय का दूध, मूंग, आदि पथ्य है, जबकि उड़द, दही, साग, खटाई, मि�� ाई, हींग, तेल, गर्म पदार्थ आदि अपथ्य माना जाता है। पथ्य-अपथ्य का ध्यान रख कर स्वयं को लम्बे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।



desi dieter

ब्रेकफस्ट

ब्रेकफस्ट हमारे खाने का सबसे जरूरी और खास हिस्सा होता है। यह हमारे शरीर को दिन भर काम करने के लिए तैयार करता है। आमतौर पर लोग इस फैक्ट से अनजान होते हैं और ब्रेकफस्ट को इग्नोर कर देते हैं। ब्रेकफस्ट क्यों जरूरी है और अच्छा ब्रेकफस्ट किसे कहा जाता है, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह :




लंच में क्या बनेगा, डिनर में क्या खाना है... ये बातें आम परिवारों में खूब डिस्कस होती हैं लेकिन ब्रेकफस्ट में क्या बनेगा, इस पर चर्चा कम ही होती है। जो भी सामने दिखा, बना लिया या फिर चाय के साथ टोस्ट या बिस्कुट से ही काम चला लिया। आम परिवारों में ऐसा ही होता है क्योंकि हम लोग खाने में ब्रेकफस्ट को सबसे कम अहमियत देते हैं। ज्यादातर फोकस लंच और डिनर पर ही होता है। इसके पीछे यह सोच भी काम करती है कि कुछ देर बाद तो लंच करना ही है, फिर ब्रेकफस्ट इतना क्यों जरूरी?



सबसे जरूरी ब्रेकफस्ट



- ब्रेकफस्ट से करीब 10-12 घंटे पहले हमने आखिरी बार कुछ खाया होता है। आमतौर पर लोग सोने से 2-3 घंटे पहले डिनर करते हैं और उसके बाद 7-8 घंटे की नींद लेते हैं। सोकर उठने के बाद ब्रेकफस्ट करने तक भी घंटे-दो घंटे बीत जाते हैं, यानी 10-12 घंटे का फास्ट हो चुका होता है। ऐसे में सुबह शरीर को एनर्जी की जरूरत होती है, जिसके लिए खाना जरूरी है।



- ब्रेकफस्ट बेहद जरूरी होता है क्योंकि यह दिन का हमारा पहला खाना होता है। आमतौर पर सुबह 9 बजे से दोपहर 2-3 बजे तक ही हम सबसे ज्यादा ऐक्टिव होते हैं। ऐसे में इस दौरान तन और मन, दोनों का अलर्ट होना जरूरी है। इसके लिए एनर्जी की जरूरत होती है, जो खाने से मिलती है।



- अगर शरीर को ताजा एनर्जी नहीं मिलेगी तो वह रिजर्व एनर्जी की तरफ जाएगा। इससे शरीर पर लोड बढ़ता है और मेटाबॉलिज्म रेट (शरीर काम करने, यहां तक कि सोने, पढ़ने, बैठने आदि के लिए भी जितनी कैलरी इस्तेमाल करता है) कम हो जाता है। वजह, शरीर को महसूस होने लगता है कि उसके पास कुछ खाना नहीं आ रहा और पहले से रिजर्व खाना कम न पड़ जाए, इसलिए वह मेटाबॉलिज्म रेट कम कर देता है। साथ ही, रिजर्व एनर्जी में से वह शरीर के बाकी हिस्सों को सप्लाई कम कर दिमाग को न्यूट्रिशन वैल्यू भेजना शुरू कर देता है। इससे थकान महसूस होने लगती है।



- लंबे समय तक खाना नहीं खाने से पेट में एसिड बन जाता है, जिसकी वजह से एसिडिटी और अपच जैसी दिक्कतें हो जाती हैं।



ब्रेकफस्ट कब करें



उठने के बाद जितना जल्दी हो सके, ब्रेकफस्ट कर लेना चाहिए। असल में, ब्रेकफस्ट शब्द का मतलब भी यही है, यानी पिछले 10-12 घंटों से जो फास्ट चल रहा है, उसे खत्म करें। सुबह उठकर सबसे पहले एक गिलास पानी पिएं। उसके बाद जूस (फल खाना बेहतर) या चाय ले सकते हैं। इसके बाद ब्रेकफस्ट कर लें। उठने के डेढ़-दो घंटों के भीतर ब्रेकफस्ट कर लेना चाहिए। शुगर के मरीजों को तो फ्रेश होने के फौरन बाद कुछ खा लेना चाहिए।



कैसा हो ब्रेकफस्ट



- ब्रेकफस्ट ताजा होना चाहिए। रात का बासी खाना खाने से बचना चाहिए क्योंकि इस वक्त पेट साफ होता है और शरीर की अब्जॉर्ब करने की कपैसिटी काफी ज्यादा होती है। ऐसे में बासी खाने से शरीर को नुकसान ज्यादा होता है।



- ब्रेकफस्ट पोषक होना चाहिए। भारी और तले-भुने खाने की बजाय पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाएं, मसलन आलू के परांठों की बजाय मेथी के कम घी वाले परांठे खाएं। वाइट ब्रेड की बजाय मल्टिग्रेन ब्रेड खाएं।



- इसमें अनाज होना चाहिए। इसके लिए ओट्स (जई), दलिया, चपाती, वीट फ्लैक्स आदि ले सकते हैं। कॉर्नफ्लैक्स की बजाय वीट फ्लैक्स लेना बेहतर है।



- ब्रेकफस्ट में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट, तीनों होने चाहिए। कुछ लोग सिर्फ टोस्ट और चाय ले लेते हैं या सिर्फ फ्रूट्स ले लेते हैं। यह सही नहीं है। इनसे फौरी तौर पर शुगर तो मिलती है लेकिन बाद में बॉडी लो में चली जाती है और कुछ देर बाद फिर से भूख लग जाती है। इन चीजों से सिर्फ एनर्जी मिलती है, पूरा पोषण नहीं। इनकी जगह दलिया, पोहा, ओट्स जैसे कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट्स लेने चाहिए क्योंकि ये धीरे-धीरे शुगर रिलीज करते हैं। साथ में, प्रोटीन भी लेना चाहिए इसलिए दूध, पनीर, अंकुरित दालें या अंडा (वाइट वाला हिस्सा) ले सकते हैं। सुबह प्रोटीन लेने से एनर्जी की लगातार सप्लाई के साथ-साथ पेट भी भरा हुआ महसूस होता है और जल्दी भूख नहीं लगती। ब्रेकफस्ट के साथ ऑरेंज जूस ले सकते हैं क्योंकि इसमें विटामिन-सी होता है, जो पोषक तत्वों को बॉडी में अब्जॉर्ब करने में मदद करता है। इसी तरह फैट के लिए भीगे हुए पांच बादाम लेना बेहतर है।



- रोजाना एक तरह के ब्रेकफस्ट की बजाय अलग-अलग तरह का ब्रेकफस्ट करें। इससे टेस्ट भी बना रहता है और शरीर को सारे पोषक तत्व मिल जाते हैं। एक चीज में जिन तत्वों की कमी होती है, दूसरी चीज उस कमी को पूरा कर देती है।



- बेहतर होगा अगर ब्रेकफस्ट के साथ तरल पदार्थ न लें। पीना ही चाहें तो ग्रीन टी, वेजिटेबल जूस, छाछ या दूध ले सकते हैं।



क्या न खाएं



- ब्रेकफास्ट के साथ चाय न पिएं। चाय में टैनिन और कैफीन होते हैं, जो पोषक तत्वों (खासकर कैल्शियम और आयरन) को बॉडी में अब्जॉर्ब नहीं होने देते। चाय पीनी है तो ब्रेकफास्ट से आधा-एक घंटा पहले या बाद में पिएं।



- सुबह-सुबह नॉनवेज न खाएं क्योंकि उस वक्त सिस्टम बिल्कुल फ्रेश होता है और हेवी प्रोटीन खाने से एसिडिटी या गैस हो सकती है। साथ ही लिवर पर जोर भी पड़ सकता है। खाना ही चाहें तो चिकन या फिश के एक-दो पीस खा सकते हैं।



- रिफाइंड या प्रोसेस्ड चीजें न खाएं जैसे कि नूडल्स, पित्जा, बर्गर आदि। बहुत ठंडी चीज न खाएं, न ही ठंडा दूध पिएं। हमारे शरीर का डाइजेशन टेंपरेचर करीब 37 डिग्री होता है। बेहद ठंडा खाने से डाइजेशन सिस्टम को नुकसान होता है।



- मैदा और सूजी से बनी चीजों (काठी रोल, उपमा, उत्पम आदि) को बेहतर ऑप्शन नहीं माना जाता क्योंकि ये रिफाइंड आटा हैं, लेकिन बिना घी के बनाया जाए तो कभी-कभी ले सकते हैं।



- कॉर्न फ्लैक्स की बजाय वीट या ओट्स फ्लैक्स बेहतर हैं क्योंकि इनमें फाइबर ज्यादा होता है।



फायदे तमाम



- ब्रेकफस्ट करने से शरीर का मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है। जिनका मेटाबॉलिज्म रेट अच्छा होता है, उनकी कैलरी ज्यादा जलती हैं और शरीर पर एक्स्ट्रा चर्बी नहीं चढ़ती।



- जो बच्चे ब्रेकफस्ट करते हैं, उनकी मानसिक क्षमता काफी अच्छी होती है और वे स्कूल में एक्टिव रहते हैं।



- ब्रेकफस्ट न करने से शरीर में कॉलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बढ़ता है। दरअसल, ब्रेकफास्ट न करने से शरीर पहले से जमा (रिजर्व) ग्लूकोज का इस्तेमाल करता है। जो ग्लूकोज बच जाता है, वह फैट के रूप में जमा हो जाता है और कॉलेस्ट्रॉल व मोटापा बढ़ता है, जबकि खाने से मिलनेवाला ताजा ग्लूकोज फौरन इस्तेमाल हो जाता है।



- ब्रेकफस्ट करने से ज्यादा एनर्जी का अनुभव होता है और बीच-बीच में भूख नहीं लगती। इस तरह बिंज ईटिंग (बार-बार छिट-पुट खाना) से दूर रहते हैं।



- आजकल लोग इतने बिजी रहते हैं कि लंच या तो छूट जाता है या काफी लेट होता है। ऐसे में ब्रेकफास्ट ढंग से करना और भी जरूरी है। इससे पेट में एसिड भी नहीं बनता।



कितना फासला जरूरी



- एक्सरसाइज करने के कम-से-कम 30-45 मिनट बाद ब्रेकफस्ट करें। जब हम एक्सरसाइज करते हैं तो खून का दौरा पैरों और दूसरे हिस्सों में जाने लगता है। पाचन के लिए खून के दौरे का पेट की तरफ होना जरूरी है, इसलिए एक्सरसाइज और खाने के बीच फर्क होना चाहिए।



- अगर खाने के बाद सैर (ब्रिस्क वॉक) करना चाहें तो भी डेढ़-दो घंटे का फासला जरूर रखें।



- ब्रेकफस्ट और लंच के बीच में 4-5 घंटे का फर्क होना चाहिए। इस बीच स्नैक्स ले सकते हैं, जैसे कि फल, अंकुरित दालें, छाछ, मुरमुरे, पोहा, सलाद आदि। जो किसी वजह से ब्रेकफास्ट और लंच के बीच ज्यादा फासला नहीं रख पाते, उन्हें बीच में स्नैक्स नहीं लेना चाहिए।



ब्रंच का फंडा



हाल के दिनों में ब्रंच (ब्रेकफस्ट और लंच साथ) काफी चलन में है, लेकिन यह हेल्दी आदत नहीं है क्योंकि इससे अगली बार के खाने में काफी अंतर आ जाता है। हालांकि जो लोग शिफ्ट में काम करते हैं या रात में बहुत देर से सोते हैं, वे ब्रंच कर सकते हैं। यह ब्रेकफस्ट के मुकाबले हेवी होता है। इसमें परांठा-सब्जी, रोटी-सब्जी, काठी-रोल आदि खा सकते हैं। ब्रंच करने वाले लोगों को दो बार हल्के स्नैक्स लेने के बाद शाम को जल्दी डिनर कर लेना चाहिए।



कितनी कैलरी ब्रेकफस्ट से



हमारी दिन भर की कैलरी का एक-तिहाई हिस्सा ब्रेकफस्ट से मिलना चाहिए। मसलन, अगर दिन में 1800-2000 कैलरी लेनी हैं तो करीब 600-700 ब्रेकफस्ट से मिलनी चाहिए। इतनी ही लंच से और करीब 100-100 कैलरी दो बार के स्नैक्स से लेनी चाहिए। बची हुई कैलरी डिनर से लेनी चाहिए। डिनर सबसे हल्का होना चाहिए। वैसे, अगर ज्यादा एक्टिव रहते हैं तो ज्यादा कैलरी की जरूरत होती है, जबकि डेस्क जॉब में हैं, यानी दौड़-भाग ज्यादा नहीं करनी होती तो 1500 से 1800 कैलरी काफी हैं। आमतौर पर पुरुषों को महिलाओं से 300-400 कैलरी ज्यादा की जरूरत होती है।



ध्यान दें जरा



कभी भी पेट भरकर न खाएं। सब कुछ इकट्ठा लेने के बजाय ब्रेक करके लें और हर तीन घंटे में कुछ-न-कुछ खाते रहें, वरना मेटाबॉलिज्म रेट डिस्टर्ब होता है। जैसे कि सलाद खाने की बजाय अलग-से स्नैक्स टाइम में ले सकते हैं। लंच में दही खाने की बजाय बाद में हल्का नमक मिलाकर छाछ ले सकते हैं। ऑफिस में हैं तो साथ में चना, स्प्राउट्स आदि रखें। बादाम, बिना नमक का पिस्ता, मूंगफली और अखरोट आदि नट्स को मिलाकर भी रख सकते हैं और बीच-बीच में खाएं।



टिफिन कैसा हो



स्कूल जाने वाले बच्चों का टिफिन अच्छा होना चाहिए क्योंकि वे अक्सर सुबह ढंग से ब्रेकफस्ट नहीं कर पाते। आमतौर पर 11 बजे के करीब लंच ब्रेक में ही उनका पहला खाना होता है। बच्चों के टिफिन में मेथी या पालक परांठा, दाल परांठा, ढोकला, वेज सैंडविच, पोहा आदि होना चाहिए। साथ में, कोई मौसमी फल भी दें।



ब्रेकफास्ट के बेस्ट आइटम



1. वेज/पनीर/ स्प्राउट्स सैंडविच + दूध/छाछ



सैंडविच के लिए मल्टिग्रेन ब्रेड और खूब सारी ताजा सब्जियां लें। पनीर डबल टोंड दूध से बना होना चाहिए। टेस्टी होने के साथ-साथ सैंडविच पोषण से भी भरपूर होता है क्योंकि इसमें फाइबर, विटामिन ई और बी, आयरन, मैग्निशियम और जिंक होता है। होल-वीट ब्रेड इस्तेमाल करनी चाहिए। इसमें फैट काफी कम होता है। ताजा सब्जियों या पनीर की स्टफिंग से सैंडविच कंप्लीट ब्रेकफस्ट बन जाता है। साथ में, दूध से कैल्शियम, विटामिन ए और बी, प्रोटीन, जिंक, पोटैशियम और फॉस्फोरस मिलता है।



2. स्टफ्ड रोटी + दूध/दही



अनाज में फाइबर और प्रोटीन भरपूर होते हैं और फैट बहुत कम होता है। गेहूं के आटे के साथ सोयाबीन, रागी या जई का आटा मिलाकर मूली, पालक, मेथी, गाजर आदि सब्जियां भरकर रोटियां बनाएं। परांठे खाने का मन हो तो बिल्कुल हल्का घी लगाएं लेकिन बेहतर रोटी खाना ही है। इससे देर तक एनर्जी मिलती है और खूब सारा फाइबर होने के कारण डाइजेशन भी आसानी से हो जाता है।



3. वेज दलिया + दही या दूध और दलिया



दलिया को आप चाहें तो दूध में बना लें या पानी में बनाकर ऊपर से दूध या दही मिला लें या फिर सब्जियों के साथ बना लें, यह हर तरीके से काफी पौष्टिक ब्रेकफस्ट है। कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, मिनरल से भरपूर दलिया आसानी से पच भी जाता है। गेहूं के अलावा रागी का दलिया भी बना सकते हैं। इसमें बाकी चीजों के मुकाबले आयरन काफी ज्यादा होता है। यह बीपी कम रखता है और अस्थमा के अलावा लिवर और दिल की समस्याओं से बचाता है। शुगर के मरीजों के लिए यह काफी फायदेमंद है।



4. ओट दलिया + दो एग वाइट



ओट (जई) हमारे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इसमें फाइबर काफी ज्यादा होता है। इसमें ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी होते हैं, जो खून जमने से रोकते हैं और दिल की बीमारियों से भी बचाते हैं। ओट इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार है और शुगर व कॉलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखता है। इससे लंबे समय तक पेट भरा होने का अहसास भी होता है और बीच-बीच में छिट-पुट खाने की जरूरत महसूस नहीं होती। साथ में, प्रोटीन से भरपूर दो अंडों का वाइट हिस्सा भी ले सकते हैं।



5. ऑमलेट/ उबला अंडा + ब्रेड स्लाइस



अंडे में प्रोटीन और विटामिन, ए, बी व ई होते हैं। कैल्शियम, पोटैशियम, सल्फर और मिनरल्स भी खूब होते हैं। सल्फर बालों और नाखूनों के लिए काफी फायदेमंद है। बच्चों को पूरा अंडा दे सकते हैं, जबकि बड़े लोग अंडे का पीला वाला हिस्सा निकाल दें क्योंकि इसमें फैट काफी ज्यादा होता है। ऑमलेट बनाएं तो घी बहुत कम इस्तेमाल करें और इसमें सब्जियां डाल लें। साथ में, एक या दो ब्रेड स्लाइस ले सकते हैं।



6. बेसन/ मूंग दाल का चीला + दही/लस्सी



बेसन या मूंग दाल का चीला अच्छा ब्रेकफस्ट माना जाता है। चीले के घोल में गाजर, शिमला मिर्च, बींस जैसी सब्जियां बारीक काट कर डाल लें या फिर अंदर पनीर की स्टफिंग कर लें। चीला बनाते हुए घी/तेल का इस्तेमाल बहुत कम करें। चीला के साथ छाछ या दही लें। पेट लंबे समय तक भरा-भरा रहेगा।



7. इडली + सांभर + दही



चावल से बनी इडलियों में कार्बोहाइइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल खूब होते हैं। इनमें कैलरी काफी कम और एनर्जी काफी ज्यादा होती है। साथ ही, आसानी से पच भी जाती हैं। सांभर के साथ खाना बेहतर है क्योंकि इसके जरिए सब्जियां और दाल का पोषण भी मिल जाता है। इडली का घोल बनाने में मेहनत लगती है इसलिए एक बार बनाकर इसे तीन-चार दिन यूज कर सकते हैं क्योंकि यह फ्रिज में चार दिन तक खराब नहीं होता।



8. स्प्राउट्स + ब्रेड + छाछ



स्प्राउट्स यानी अंकुरित दालों की चाट बनाकर सुबह-सुबह खाना सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा है। स्प्राउट्स को ब्रेड के अंदर भरकर सैंडविच भी बना सकते हैं। स्प्राउट्स के साथ दही या छाछ अच्छा कॉम्बिनेशन हो सकता है। एनर्जी से भरपूर स्प्राउट्स में फैट काफी कम होता है। साथ में, होल वीट या मल्टि-ग्रेन ब्रेड ले लें, जिनसे लंबे समय तक पेट भरा होने का अहसास होता है। इसके अलावा छाछ भी ले सकते हैं।



9. ओट्स/वीट फ्लैक्स + दूध



किसी भी रूप में अनाज खाने से शरीर को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और फाइबर मिलते हैं। खास यह है कि इनमें फैट काफी कम होता है, जबकि आयरन, मैग्निशियम, कॉपर, फॉस्फोरस आदि मिनरल अच्छी मात्रा में होते हैं। रिसर्च कहती हैं कि जो लोग ब्रेकफस्ट में अनाज खाते हैं, उनमें बीमारियों से लड़नेवाले ऐंटि-ऑक्सिडेंट ज्यादा पाए जाते हैं। इनसे देर तक भूख नहीं लगती। साथ में दूध पीने से कैल्शियम की कमी भी पूरी होती है।



10. पोहा/उपमा + दही/छाछ



पोहा या उपमा को अकेले बहुत अच्छा ब्रेकफस्ट नहीं माना जाता लेकिन खूब सारी सब्जियां और नट्स मिलाने से ये काफी पोषक हो जाते हैं। तब इनसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और विटामिन मिलता है। सूजी में सोडियम काफी होता है और कॉलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता। इनके साथ में छाछ या दही ले सकते हैं।



ये भी फायदेमंद



ब्रेकफस्ट में सिर्फ फल खाने की सलाह नहीं दी जाती लेकिन बाद में स्नैक्स में फलों की चाट बनाकर खा सकते हैं या फिर अगर ब्रेकफस्ट में कुछ और हल्का खा रहे हैं तो साथ में फ्रूट चाट खा सकते हैं। फल विटामिन, मिनरल, फाइबर, प्रोटीन के अलावा ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी भरपूर होते हैं। कई सारे फल एक साथ मिलाकर खाना और अच्छा है। साथ में ताजा दही भी मिला सकते हैं, जिससे कैल्शियम बढ़ जाता है और स्वाद भी बढ़ जाता है। फल ताजे और मौसमी हों तो बेहतर है।



नोट: आयुर्वेद में नमकीन खाने के साथ दूध के कॉम्बिनेशन को सही नहीं मानता। जो लोग इसमें भरोसा करते हैं, उन्हें दूध की बजाय छाछ लेनी चाहिए। बड़ों को दूध डबल टोंड लेना चाहिए और छाछ भी डबल टोंड दूध की बनी होनी चाहिए।






शनिवार, 18 जून 2011

Height Healthy Weight Range (Pounds) Kilograms


4'10" 109-121 49-54

5'0" 113-126 51-57

5'1" 115-129 52-58

5'2" 118-132 53-59

5'3" 121-135 54-61

5'4" 124-138 56-62

5'5" 127-141 57-63

5'6" 130-144 58-65

5'7" 133-147 60-66

5'8" 136-150 61-68

5'9" 139-153 63-69

5'10" 142-156 64-70

5'11" 145-159 65-72

6'0" 148-162 67-73

womwn--Healthy Weight Range

Women




Height               Healthy Weight Range (Pounds)                        Kilograms

4'10"                             109-121                                                     49-54

5'0"                               113-126                                                     51-57

5'1"                                115-129                                                    52-58

5'2"                                118-132                                                     53-59

5'3"                                121-135                                                     54-61

5'4"                                124-138                                                      56-62

5'5"                                 127-141                                                     57-63

5'6"                                 130-144                                                      58-65

5'7"                                 133-147                                                      60-66

5'8"                                 136-150                                                      61-68

5'9"                                  139-153                                                      63-69

5'10"                                 142-156                                                     64-70

5'11"                                 145-159                                                     65-72

6'0"                                   148-162                                                      67-73